-:-याद की झरोखे से-:-
यादों के झरोखे से:- पुस्तकालय की घटना
“”आज से चार साल पहले मैं जिस शहर में रहता था वहीं के किसी प्राइवेट पैरामेडिकल कॉलेज में नोकरी करता था मैं वहाँ पर लैब-असिस्टेंट के पद पर कार्यरत था। पर उसके अलावा खाली समय में कॉलेज के अन्य काम भी किया करता था। साथ ही सर से लेकर अन्य स्टाफों का काम कर देता था जो भी मुझे काम के लिये बोलते उस काम को मै कभी भी मना नहीं करता था। जिस दिन मुझे कोई काम मिलता था तो मै उस काम को बड़े लगन से करता था। ओर जिस दिन काम नहीं करता था तो दिन लाइब्रेरी में बैठकर अक्सर पुस्तकें,अखबार ओर पत्रिकाएं पढ़ा करता था। वेसे तो वहाँ पैरामेडिकल से सम्बंधित ही किताबें होती थी पर कुछ अन्य ज्ञानवर्धक किताबें भी रखी होती थी। मेरे लैब में बहुत कम रहता था क्योंकि वहाँ पर स्टूडेंट्स ही अपने आप प्रेक्टिकल करते रहते थे मेरा काम तो बस लैब के हर सामान की देखरेख करना होता था मेरा स्टूडेंट्स के साथ भी अच्छी दोस्ती हो गयी थी।
एक दिन कॉलेज के डीन सर ने मुझे अपने ऑफिस में बुलाया और कहा कि आप अपने साथ कुछ स्टॉफ को लेकर पुरानी बिल्डिंग में कुछ पुरानी किताबों का बंडल पड़ा हुआ हैं इन सभी क़िताबों के बंडलों को कॉलेज के नई पुस्तकालय में रखो, मेँने कहा ठीक है सर हो जायेगा ये काम। मैं अपने साथ तीन स्टाफों को लेकर पुरानी बिल्डिंग में गया जहाँ पर बहुत से पुरानी किताबों का बंडल रखा हुआ था हम सबने अपने अपने सुविधा के अनुसार किताबों के बंडल लेकर नई पुस्तकालय में रखना शुरू किया और उस दिन हम सभी ने वहीँ काम किया। काम पूरा हो जाने के बाद मैंने डीन सर को बताया की हमने सारे किताबों के बंडल नई पुस्तकालय में रख दिया है। सर ने मुझे ओर मेरे साथ तीनों स्टाफ़ को हमारे काम करने के लिए शाबासी दी और सबको ओफिस में बुलाया और चाय-बिस्किट की हल्की सी पार्टी दी हमारे इस काम के लिये। मुझे तो टाइम पास करना था ताकि रात को अच्छे से नींद आ जायँ। उस दिन तो मुझे ओर भी बड़ी ख़ुशी हुई कि पहली बार इन पुस्तकों के साथ समय गुजरा स्याम के पांच बजे हमारी छुटी हो जाती थी और मैं कॉलेज के किसी एक सर के बाइक में आता था उस दिन रात को खाना होटल में ही खाया और जल्दी थकान के कारण जल्दी सो गया। उस दिन मस्त होकर सो गया और सुबह कब आंख खुली पता ही नहीं चला।
फिर हर रोज की तरह ही सुबह का नाश्ता बनाकर टिफिन में दो चार रोटी सब्जी पैक कर एक दम तैयार होकर महानगर बस सेवा से कभी लटकते खड़े होकर बस से थोड़ा बहुत पैदल चलकर ठीक सवा 9 बजे कॉलेज में उपस्थिति लगाकर अपने कॉलेज के अपने लैब में बैठ जाता ओर लैब में सारे यंत्र को सफाई और यथा स्थान पर रखता।
दोपहर भोजन के बाद लगभग ढाई बजे पुस्तकालय से अरुण सर मुझे बुलाने आये कि आपको पुस्तकालयाध्यक्ष मैडम जी बुला रही है आपसे कुछ जरूरी काम है मैने सोचा कि चलो आज भी काम मिल गया है मैं उनके साथ पुस्तकालय चले गया मैंने मैडमजी जी को नमस्ते किया तभी मैडम ने कहा “आओ दिनेश जी कैसे हो आप लगता है कल किताबों का बंडलों को रखकर थक गए हो ” ठीक हूँ मैं थका नहीं काम करके तभी मेडमजी ने कहा कल तुमने बहुत मेहनत कि किताबों के बंडल को यहाँ लाके मैंने कहा ये तो हमारा फर्ज है आज उन्हीं बंडलों में से कुछ किताबें हैं जो कुछ खाली अलमारीयों के रैक में रखना है” विषयवर मैने कहा बिल्कुल” मैं तो तैयार हूँ बस आप इजाजत दें ओर मैं अरुण सर के साथ किताबों को सजाने लगा अलमारियों में ओर मैडमजी किताबों को विषय के अनुसार अलग करने लगी तभी अरुण सर बाथरूम गये।
मै किताब लगाते रहा तभी अचानक अलमारी में किताबों का वजन बढ़ने लगा ओर वह डगमगाने लगा, उस वक्त मैडम जी मुझे किताब दे रही थी मैने मैडम जी कहा आप नीचे से हट जाओ तुरंत क्योंकि यह रैक गिरने वाला है मै इसे थाम रहा हूँ मैडम जी तुरंत अरुण सर को बुलाने गयी मैं उसे थमाता रहा किताबों से भरा वह रैक मेरे ऊपर घिरने ही वाला था तभी अरूण सर, और मैडम जी तेजी से भागे ओर अलमारी को थाम लिया इस तरह से मैंने जल्दी जल्दी अलमारी से किताबों को खाली किया खाली अलमारी को दूसरे जगह पर रखा क्योंकि उस दिन बहुत बड़ा नुकसान हो सकता था मैडमजी या मुझे। फिर मैडमजी ने कहा “आज अपने हमें मरवा ही दिया था” मैंने कहा “मैडम जी अगर मैं आपको दूर हटने या जाने के लिये नहीं कहता तो यह अलमारी के साथ अन्य दो अलमारी भी गिरने की सम्बवना थी ओर इसके कारण आप भी इस भारी आलमारी के चपेट आ जाती ” मैने कहा “आप दोनों चिंता मत करो मैं ठीक हूँ।”
मैने मजाक में कहा” मैडमजी आज मुझे कुछ हो जाता तो ख़ुशी होती कि कम से कम मां सरस्वती के इस पवित्र ज्ञान के पुस्तकालय के मंदिर में किताबों के बीच ओर वो भी लाइब्रेरियन के सामने मर जाता तो कम से कम लाइब्रेरी के इतिहास में मेरा नाम आ जाता और ये बाते आप लिखते ओर दुनिया को पता चलता।” तभी मैडम जी ने कहा दिनेश जी “तुम लाइब्रेरी के स्टाफ ना होकर भी आपने मुझे घायल होने से बचाया ओर खुद को जोखिम में डाल कर ओर साथ ही और जो शब्द आपने बोले वह मेरे लिये ओर अरुण सर के लिये हमेशा हमेशा के लिए दिल मे उतर गयी है” तभी अरुण सर ने कहा आपने बिल्कुल सही कहा और ‘इनके जगह ओर होते तो पता नही आज क्या से क्या हो जाता हम मुसीबत में आ सकते थे पर दिनेश जी ने ऐसा नहीं घुसा भी नहीं किया उल्टा हम दोंनो के लिये ज्ञान की बात भी सीखा दी की वास्तव में लाइब्रेरी का ओर पुस्तक का क्या महत्व होता है हम सभी के आम जीवन में।” मैंने कहा “सर ऐसी कोई बात नहीं आपने खुद मुझे बचाया इसके लिये आप दोनों को दिल से शुक्रिया।” मैने कहा “मैडम जी और सर ये आज की ये बात कॉलेज में अन्य किसी को पता नहीं चलना चाहिए ये बात राज ही रहना चाहिए हम तीनों के बीच” इस तरह से कॉलेज में किसी को भी इस घटना का पता नहीं चला उसके एक साल बाद मैंने नोकरी छोड़ दिया था।
वो घटना आज भी मेरे जहन यूँ अमिट छाप की तरह छप गया है जैसे मैं किसी पुस्तकालय में जाता हूँ तो मुझे उस घटना को याद आ जाता है कि मैं कैसे काम के चक्कर मे लाइब्रेरी में किताबों से भरी अलमारी मेरे ऊपर आते आते बच गयी ओर मैं चुपचाप उस अलमारी को थामे हूँ ताकि बगल में काम कर रही मैडम जी कोई चोट ना आएं।
इसीलिए यह घटना मेरे लिए एक संस्मरण के तौर पर सीधे सरल शब्दों में लिखने का प्रयास किया है मैंने क्योंकि इस कहानी में लेखक के साथ जैसे हुआ वैसे ही लिखा है यह कोई मंगङ्गत या काल्पनिक कहानी नहीं हैं। सच कहूँ तो मैं कोई अनुभवी कहानी लिखने वाला लेखक नहीं हूँ। मैंने सोचा अपने इस घटना को संस्मरण तौर पर आप सब पाठकों तक यह छोटी सी संस्मरण कहानी को प्रस्तुत कर रहा हूँ मैं ।””
♂लेखक- दिनेश सिंह:♀
,★★ यह कहानी -2015-सितंबर माह की है।★★
【●यह कहानी लेखक के पास सर्वाधिक सुरक्षित है●】