यादों में छठ
YouTube पर स्क्रोल करते करते अचानक से रवि को एक छठ का गीत मिला, अब छठ का गीत दिखे और एक बिहारी उसे सूने बिना निकल जाए ये कैसे हो सकता है सो उसने गीत बजा दिया-“ उगऽ हे सूरज देव भेलऽ भिनसरवा वा” और रवि अपने गाँव के छठ महौत्सव के सुनहरी यादों में खो गया।
रवि बिहार के एक छोटे से गाँव चंदापुर का रहने वाला है। बचपन से पढ़ाई में होशियार था इसलिए उसके पापा ने उसे पहले इंजीनियरिंग करवाई और फिर उसकी नौकरी यूरोप के बड़ी कम्पनी में अच्छी पोस्ट पर हो गयी। वेतन भी काफ़ी अच्छा था सो यूरोप में ही अपना घर ले लिया। अब जॉब के वजह से वो दो सालों से घर नहीं गया। इस बार भी छुट्टी लेने की कोशिश की पर छुट्टी छठ की जगह नए साल पर मिली। लेकिन पर्व तो हर साल अपने समय se आती है तो इसलिए उसे इसबार भी यादों से ही काम चलाना होगा। इसलिए जब अचानक से छठ गीत दिखी तो वो सुनने लगा और अपने रूह को अपने गाँव में पहुँचाने की कोशिश करने लगा जहां उसकी माँ और भाभी छठ की तैयारियों में लगी थी जिसका उसे फ़ोन पर खबर मिल गयी थी।
सोफे पर पीठ टिकाकर सोचने लगा की किस तरह बचपन में जब दीवाली के ख़त्म होते ही सब छठ की तैयारियों में लग जाते थे। बड़े घर की साफ़ सफ़ाई और ख़रीदारी करते थे और बच्चे और नौजवानो के हिस्से में छठ घाट और उसके रास्तों की सफ़ाई और सजावट का ज़िम्मा होता था।कुदाल खूरपी से पहले अच्छी तरह घास काटी जाती फिर कंकड़ पत्थर को झाड़ू से बहार कर हटाया जाता ताकि व्रती को पैर में ना चुभे। फिर छठ घाट को सजाया जाता रंग-बिरंगे तोरण और अच्छी साउंड सिस्टम का व्यवस्था किया जाता ताकि तीन दिन तक मधुर छठ गीत लोगों के कानों को सुकून देता रहे। घाट पर मेले लगते तमाशे वाले आ जाते और खूब चहल पहल रहती इन चार दिनों में।अचानक से यानी तंद्रा फ़ोन की घंटी से टूटी, देखा तो पापा का फ़ोन आ रहा था। उठाकर प्रणाम किया फिर उधर से आवाज़ आयी- आज खड़ना बा आजों तोरा फ़ोन करेला इयाद ना रहे। लऽ माई से बात कर लऽ तुरते पूजा कर के उठली हऽ। kaisan बाड़े बाबू, खाना खा लेलऽ। रवि ने हाँ में जवाब दिया और फिर पूछा ठीक बानी तू ठीक बाड़ी नू। आज त सबे आयेल होयी प्रसादी खाय।
हाँ अभी सब आवता लोग तोर पापा और भाईया सब के बोला के लावत बा। ठीक बा मम्मी रखऽ तानी कल घाट पर जाके video कॉल क़रीहें। अब तो छठ इयाद में बा ना त वीडियो कॉल में बा। ए माई छठ माई त सब के मनोकामना पूरा करेलि न। त ई बेर ई माँगिहे की अगला छठ हम घर पर सब के साथ मनाई। सब त्योहार बीत जाता कोई फ़र्क़ ना पड़ेला बाक़ी छठ में एकदम अकेला महसूस होला माई। कहते-कहते रवि की आँखें डबडबा जाती है। और माँ रुआंसे होकर बोलती है- हे छठी माई अगला साल अगर बाबू छठ पर साथे रहिहें तो दोहरा सूप से अरग देम। रवि प्रणाम करके फ़ोन रखता है और फिर पीठ से गाना सुनते हुए छठ के सुनहरे यादों में खो जाता है।