यादों की रूत
सावण की है अमवसा, हरियाली है तीज
हाली हल है जोतता, बोता सारे बीज
सावण आया लौट के, यादों की ले रूत
उन राहों पर हम चले, नीडर बनकर बूत
तन्हा- तन्हा मैं चली, इत-उत सब ही देख
जोगन प्यासी दर्श को, नैना बरसे खेत
उनकी बातें याद हैं, मन घायल कर जाय
अनकही- अनसुनी कहीं, आंखें भर- भर आय
शीला गहलावत सीरत
चण्डीगढ़, हरियाणा