यादों की छांव.में
अरसा बीता चले गये तुम
फिर भी दिल से याद न जाये
जाते सावन की बदली ज्यों
मुड़ मुड़ आकर मेंह बरसाए।
कूक रही है कोयल तब से
पपहिरी भी कर रही पुकार
चले गये जो जाने वाले
वहां से न कब आये अवाज
रुहों की उस तड़फन को अब
किस तरह से कौन समझाए
फिर भी दिल से याद न जाये
अक्सर सपने में तुम आते
वह पल कितने भा भा जाते
वर्चुएल सच का पता बताते
आंख खुले तो झट छिप जाते
रुहों की तब उस तड़फन को
किस तरह से कौन समझाए
जहां भी हो तुम्हें मिले खुशी
नया जन्म तुम को मुबारक
जीवन मृत्यु का नियम अटल
हमें भी मौका मिले मुबारक
रुहों की तब उस तड़फन को
किस तरह से कौन समझाए।
फिर भी दिल से याद न जाये।