यादों का कोहरा
20/12/2021
यादों का कोहरा
इक धुंध सी लिपटी हुई थी चारों तरफ।दो हाथ के आगे का मार्ग सुझाई नहीं दे रहा था।सुबह का समय था ।कार में पुराने गानों की आवाज गूंज रही थी और मधु अतीत में डूब उतरा रही थी।
सुबह की चहल पहल ठंडे और भाप से ढँके कार के शीशे से देख कर बचपन याद आ रहा था।सर्दी में ठिठुरते स्कूल की वर्दी पहने जाते बच्चे।फल -सब्जियों के ठेले। रोजगार की तलाश में बैठे बीड़ी पीते मजदूर और खोमचा सजाते दैनिक धंधे का जुगाड़ करते लोग।
“चाय पियोगी” पति की आवाज सुनते ही वह अपने ख्यालों की दुनियाँ से बाहर निकली।
देखा छोटी सी गुमटी पर एक प्रौढ़ा मिट्टी के चूल्हे को सुलगा चुकी थी। आसपास कुल्हड़,नमकीन के पाउच ,चाय पत्ती का डिब्बा व एक बड़ा भगोना जिसमें शायद दूध था।उसे चूल्हे पर चढ़ा चुकी थी। कुल्हड़ देखते ही उसे फिर कुछ याद आया और वह कार से उतर गुमटी की ओर बढ़ गयी।
तीन चाय की कह पतिदेव हल्की सी धूप की ओर मुँह करके खड़े थे।वह वहीं पड़ी बैंच पर बैठ गयी।
ऐसा ही तो घना कुहरा था जब मीत के साथ एक गुमटी पर चाय पीने रुकी थी।यही कुल्हड़ वाली चाय। एक कुल्हड़ चाय से मन न भरा तो दूसरी बार बनबाई। तब मीत ने एक हाथ में अपना कुल्हड़ सँभालते दूसरे हाथ से उसकी हथेली पर कुल्हड़ रखते वक्त हथेली थाम ली। अब न वह कुल्हड़ छोड़ सकती थी और न हथेली खींच सकती थी। गर्म कुल्हड़ का अहसास मीत के स्पर्श से कहीं दब गया। तब उसके कानों में गूंजे कुछ फुसफुसाते शब्द “आई लव यू “उसका हाथ हिला और गर्म चाय छलकी। शायद उसका चेहरा लाज से लाल हुआ होगा तभी कनपटियाँ गर्म हुईं। “उफ्फ…. मार डाला। तेरी सादगी तो पहले ही लूट चुकी मुझे।”
“चुप..।”कहते हुये मधु ने कुल्हड़ होठों से लगा लिया।
“मैडम जी ,लेओ चाय “मधु की तंद्रा भंग हुई।एक थाली में कुल्हड़ लिए एक दसेक बरस का लड़का आवाज लगा रहा था। कुल्हड़ उठाते हुये उसने देखा सुबह की धूप खो चुकी थी और कोहरा और घना हो गया था। गुमटी से निकलने वाला धुआँ और कोहरा इस तरह एक हुये कि लग ही न रहा था कि धुआँ है या कोहरा।
यादों के कोहरे में जाती मधु चाय के स्वाद में बीते लम्हें ढूंढ रही थी।
पाखी