Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Jun 2023 · 3 min read

#यादें_बाक़ी

#यादें_बाक़ी
■ बरसी नासिर हुसैन की
【प्रणय प्रभात】
तीन साल पहले कल ही के दिन यानि 07 जून 2020 को एक सहयोगी रिपोर्टर ने कॉल कर बुरी ख़बर दी। यह कोविड महामारी के भीषण दौर का समय था, जब आए दिन कोई न कोई अनहोनी सामने आ रही थी। यह अलग बात है कि मुझ तक कोई-कोई ख़बर ही बमुश्किल पहुंच पा रही थी, क्योंकि मैं ख़ुद 29 फ़रवरी को हुई बड़ी सर्जरी के बाद रुग्ण-शैया पर था। परिजनों की कोशिश थी कि आघात पहुंचाने वाली कोई सूचना मुझ तक अचानक न पहुंचे। बावजूद इसके यह मनहूस ख़बर मुझ तक पहुंच ही गई, जो बेहद दुःखी करने वाली थी।
पता चला कि मीडिया के क्षेत्र में लगभग 5 साल दिन-रात सहयोगी रहे मित्र नासिर हुसैन नहीं रहे। समाचार को सुन कर बहुत ही पीड़ा हुई। नासिर भाई भोपाल से प्रकाशित राज एक्सप्रेस में बतौर फोटोग्राफर मेरे सहयोगी रहे और उसके बाद अपने नेक व्यवहार से दिल के क़रीब आते चले गए।
धर्म को लेकर मज़हबी कट्टरता से कोसों दूर नासिर भाई को न सनातन से गुरेज़ था, न सनातनी परंपराओं से परहेज़। अजमेर शरीफ़ से पुष्कर जी तक एक भाव से गए नासिर भाई के लिए मज़ारो और मठों में कोई फ़र्क़ नहीं था। तबर्रुक हो या प्रसाद, वे निर्विकार भाव से ग्रहण कर लेते थे। अन्नकूट उत्सवों में भागीदारी को लेकर उनकी और हनारी बेताबी में कभी कोई फ़र्क़ नहीं दिखा।
पहली बार ताज्जुब तब हुआ, जब उन्हें राज एक्सप्रेस के राठौर मार्केट स्थित कार्यालय में पूजा के आले की सफाई करते देखा। इसके बाद कोई कौतुहल बाक़ी रहा ही नहीं। हर दिन सबसे पहले ऑफिस आने के बाद मां लक्ष्मी, सरस्वती और गणपति जी की तस्वीर को माला पहनाना और अगरबत्ती लगाना भी उनकी नित्य क्रिया का हिस्सा रहा। माउंट आबू से श्रीनाथ जी और सांवरिया सेठ तक की यात्रा का ज़िक्र वे बड़े ही आह्लाद के साथ करते थे।
हंसी-मज़ाक के आदी नासिर हुसैन अपने ऐबों को भी बेबाकी से बता देते थे। किसी बात का बुरा न मानना व गुस्से की गांठ बांधना भी उनकी फ़ितरत में नहीं देखा। काम को लेकर समय की पाबंदी और अनुशासन का आदी होने की वजह से मैं अक़्सर नासिर भाई को खरी-खोटी सुना देता था। याद नहीं कि बन्दे ने कभी पलट कर जवाब दिया हो या पीठ पीछे बुरा-भला कहा हो।
माउंट आबू को “मान-टापू” और वहाँ स्थित अमर-घटा को “अमर-घण्टा’ बोलने वाले नासिर के तमाम शब्द हास-परिहास की स्थिति पैदा कर देते थे। इन्हीं में एक मनगढ़ंत शब्द था “चोंचेबल” जो नोकदार जूतों के लिए नासिर भाई अक़्सर उपयोग में लाते थे। हाई स्कूल तक पढ़े-लिखे नासिर भाई का अबोध भाषा-बोध प्रायः रोचक माहौल बनाता था। तमाम प्रसंग हैं, जो आज भी अंदर तक गुदगुदाते हैं।
छोटे-बड़े वाहन चलाने में निपुण नासिर भाई एक मेहनती व दिलेर सहयोगी थे। अपने पिता के इंतकाल के बाद तीन छोटे भाइयों को पैरों पर खड़ा करने वाले नासिर भाई का जीवन संघर्ष नज़दीक़ से देखने का मौका मिला। बुजुर्ग माँ की ख़िदमत, छोटी बहन की शादी और पैतृक घर का कायाकल्प उनकी सोच व परिश्रम से ही संभव हुआ।
तमाम तरह से आर्थिक नियोजन कर छोटे से परिवार को हर तरह की सुविधा देने में भी वो सफल रहे। आर्थिक स्थिति को लेकर बेहद जागरूक और सतत क्रियाशील नासिर भाई की मेहनत ने उन्हें आजीविका के प्रमुख स्रोत छिनने के बाद भी उन्हें किसी का मोहताज़ नहीं बनने दिया। स्कूली ऑटो चालक से प्रेस फोटोग्राफर तक की यात्रा में नासिर भाई की व्यवहार-कुशलता के सभी कायल रहे। मदद के लिए हमेशा तैयार रहने वाले नासिर भाई अच्छे खाने के साथ-साथ खिलाने के भी बेहद शौक़ीन थे। मीडिया लाइन से हटने के बाद मधुमेह (डायबिटीज) ने पूरी तरह तंदुरुस्त नासिर हुसैन को जकड़ लिया। इकलौते बेटे बिट्टू को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अंतिम समय तक कोशिश करते रहे नासिर भाई के अधूरे ख़्वाब आपदा काल और इस त्रासदी के बीच पूरे हुए। बीते साल बिट्टू का निकाह भी हो गया। अब वह अपने पिता की तरह कार्यकुशल बने, यह कामना कर सकते हैं बस। अल्लाह तआला मरहूम नासिर भाई की रूह को जन्नत अता फ़रमाए और सभी परिजनों को यह दुःख सहने की ताक़त देता रहे। 4C
#ख़िराज़े_अक़ीदत 💐💐💐
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

161 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

सफ़र में आशियाना चाहता है
सफ़र में आशियाना चाहता है
Kanchan Gupta
हमको लगता है बेवफाई से डर....
हमको लगता है बेवफाई से डर....
Jyoti Roshni
आम की गुठली
आम की गुठली
Seema gupta,Alwar
" একে আমি বুকে রেখে ছী "
DrLakshman Jha Parimal
"अचरज"
Dr. Kishan tandon kranti
चुभते शूल.......
चुभते शूल.......
Kavita Chouhan
कौड़ी कौड़ी माया जोड़े, रटले राम का नाम।
कौड़ी कौड़ी माया जोड़े, रटले राम का नाम।
Anil chobisa
Safar : Classmates to Soulmates
Safar : Classmates to Soulmates
Prathmesh Yelne
4430.*पूर्णिका*
4430.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मै पूर्ण विवेक से कह सकता हूँ
मै पूर्ण विवेक से कह सकता हूँ
शेखर सिंह
मां के किसी कोने में आज भी बचपन खेलता हैयाद आती है गुल्ली डं
मां के किसी कोने में आज भी बचपन खेलता हैयाद आती है गुल्ली डं
Ashwini sharma
''नवाबी
''नवाबी" बुरी नहीं। बशर्ते अपने बलबूते "पुरुषार्थ" के साथ की
*प्रणय*
आत्महत्या
आत्महत्या
Harminder Kaur
कौन कहता है कि नदी सागर में
कौन कहता है कि नदी सागर में
Anil Mishra Prahari
आज का पुरुष औरतों को समान अधिकार देने की बात कहता है, बस उसे
आज का पुरुष औरतों को समान अधिकार देने की बात कहता है, बस उसे
Annu Gurjar
प्रेम सुधा
प्रेम सुधा
लक्ष्मी सिंह
*जीवनदाता वृक्ष हैं, भरते हम में जान (कुंडलिया)*
*जीवनदाता वृक्ष हैं, भरते हम में जान (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
वीरांगना अवंती बाई
वीरांगना अवंती बाई
guru saxena
'कांतिपति' की कुंडलियां
'कांतिपति' की कुंडलियां
नंदलाल सिंह 'कांतिपति'
मेरी आंखों का
मेरी आंखों का
Dr fauzia Naseem shad
*बारिश सी बूंदों सी है प्रेम कहानी*
*बारिश सी बूंदों सी है प्रेम कहानी*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
कितना अच्छा होता...
कितना अच्छा होता...
TAMANNA BILASPURI
धनतेरस जुआ कदापि न खेलें
धनतेरस जुआ कदापि न खेलें
कवि रमेशराज
फितरती फलसफा
फितरती फलसफा
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
हो हमारी या तुम्हारी चल रही है जिंदगी।
हो हमारी या तुम्हारी चल रही है जिंदगी।
सत्य कुमार प्रेमी
कोई और था
कोई और था
Mahesh Tiwari 'Ayan'
उल्फत का दीप
उल्फत का दीप
SHAMA PARVEEN
भीगी फिर थीं भारी रतियाॅं!
भीगी फिर थीं भारी रतियाॅं!
Rashmi Sanjay
हॉर्न ज़रा धीरे बजा रे पगले ....देश अभी भी सोया है*
हॉर्न ज़रा धीरे बजा रे पगले ....देश अभी भी सोया है*
Atul "Krishn"
- बंदिश ए जिन्दगी -
- बंदिश ए जिन्दगी -
bharat gehlot
Loading...