यादें
तुम्हारी यादों की परछाई कुछ
इस तरह साथ चलती है कि न
देना यादों के मक़बरे को कभी
तुम ताज का नाम क्योंकि ताज
तो किसी की कब्र का नाम है
तुम्हारी यादें तो बसती हैं मेरी
रूह में हसीन बातों का सुकून बनकर
कहा था कभी तुमने कौन याद रखता है
एक वक्त के बाद सब भूल जाते हैं
हाँ शायद तुम्हारे लिए आसान होगा
हमारे वो बीते हुए सुनहरी यादों के साये
जो बस एक खेल ही तो था तुम्हारे लिए
क्या पता है तुम्हें यादों के साये ताउम्र
कुछ इस तरह लिपटे रहते हैं जिस्म के साथ
जैसे नागफनी के पत्ते
तुम तो भूल गए अपनी मजबूरियां बताकर
या तुम्हें शायद वो था नहीं जो मैं समझ बैठी
आदत थी तुम्हारी बस वक़्त गुजारने की
अपनी शामों को रंगीन बनाने की
चलो तुम तो आज बहुत खुश हो न
अपनी रंगीन मखमली दुनिया मे
यही तो चाहतें होती हैं हर इंसान की
पैसा ,दौलत ,नाम ,सम्पति ,यश
क्या एक बात बताओगे सच सच
क्या सुकून है तुम्हारे पास
क्या वक़्त है तुम्हारे पास दो वक्त की
रोटी अपने परिवार के साथ खाने का
मुझे पता है तुम मेरा लिखा हुआ सब पढ़ते हो
मन ही मन मुझे गालियां भी देते होंगे
आज की इस दर्प भरी दुनिया मे प्यार
जैसी फालतू चीज के लिए वक़्त ही कहाँ है
ये तो हम जैसे गरीबों का काम है
हाँ सुनो गर वक़्त हो मेरा जवाब देने का
तो एक जवाब जरूर देना तुम खुश तो हो न
अपनी उस नीरस सी जिंदगी में जो
तुम्हारा ख्वाब थी ऐसी ही जिंदगी
अपने बच्चों को भी विरासत में देकर जाना जो कि तुम्हारा है ही नहीं
सच कड़वा होता है ,भयानक भी
लेकिन प्यार सारे डर को दरकिनार करके
अपने साथी को अपने आगोश में छिपा लेता है
और सच मानो तो प्यार से बड़ा दुनिया मे कुछ न हुआ न है न कभी होगा ,सिर्फ यही सत्य है
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़