“यादें” ग़ज़ल
दिल मेँ यादों का मालो-ज़र रखिये,
कुछ तो पीने को ये ज़हर रखिये।
फिर से वादा है उसका मिलने का,
आज फिर क्यूँ न दीदे-तर रखिये।
तीरगी, रास आ गई मुझको,
किस लिए चर्चा-ए-क़मर रखिये।
हम तबस्सुम को ओढ़ बैठे हैं,
बिस्तरे-ग़म पे अपना सर रखिये।
आँधियों का न कोई ख़ौफ़ रहे,
चराग़े-दिल को, मनव्वर रखिये।
उसकी कुछ बात ही निराली है,
ख़याल उसका, हर पहर रखिये।
यूं न जाएगी तेरी तिश्ना-लबी,
भले आँखों मेँ समन्दर रखिये।
रफ़्ता-रफ़्ता ही रँग लाती है,
हिना है, कुछ तो अब सबर रखिये।
देखकर इन्तेहा ही, जाएंगे,
अब न इसमें कोई क़सर रखिये।
हाले-“आशा” ये, इक ने कर डाला,
किसको अब, ज़ेरे-तसव्वर रखिये..!
मालो-ज़र # धन सम्पदा, valuables
तीरगी # अँधेरा, darkness
चर्चा-ए-क़मर # चाँद की चर्चा,
discussion on moon
तबस्सुम # मुस्कान, smile
मनव्वर # उद्दीप्त, प्रकाशित, illuminated, enlightened etc.
तिश्ना लबी # होठों की प्यास, thirst of lips.
हिना # मेँहदी, mehandi
इन्तेहा # पराकाष्ठा, the ultimate, climax etc.
ज़ेरे-तसव्वर # ख़याल मेँ, in thoughts