यह सिद्धांत अटूट।
हम सबको अलग अलग रास्तों से गुजर कर आना एक ही ठाव।
समस्त जीवों की आत्मा का यही एक स्वभाव।।
बना कर ठहरें हो, नीचे एक ही छांव।
लाख जतन का एक ही, उपाव।
भ्रम बश होकर क्यों, आत्मा को भटकाता है।
बाहर बाहर ही सुख तलाशता फिरता है।
जब मिल जाये सद् गुरु,तो सारे भ्रम जाये टूट।
बिन हरि भजन न होय मुक्ति यह सिद्धांत अटूट।।