यह जीवन
* गीतिका *
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यह जीवन उत्सव बन जाये, ऐसे कर लें कर्म।
और समझ लें भाव सत्य का, गहराई से मर्म।
सही समय पर निर्णय लेना, कभी न करना देर।
सही समय पर चोट कीजिए, जब लोहा हो गर्म।
साथ उचित के रहें हमेशा, नहीं करें परवाह।
बिल्कुल कभी नहीं घबराएं, छोड़ दीजिए शर्म।
जीव मात्र के लिए भरा हो, मन में सेवा भाव।
नित्य देश हित कदम बढ़ाएं, यही हमारा धर्म।
मेघा खूब समय पर बरसे, रिमझिम रिमझिम नित्य।
खिला खिला है छोर प्रकृति का, दूब बिछी है नर्म।
साथ समय के कर्तव्यों का, खूब करें निर्वाह।
दुष्टजनों का साथ नहीं दें, रखें बचाकर चर्म।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य