यह जानते हुए कि तुम हो कितनी मेरी ख़ास,
यह जानते हुए कि तुम हो कितनी मेरी ख़ास,
क्या करूं…. लाचार हूॅं, आऊं कैसे तेरे पास।
कभी ख़्वाबों में देख लेता हूॅं तेरा हसीन चेहरा,
हक़ीक़त की दुनियां फिर भी करती मुझे निराश।
…. अजित कर्ण ✍️
यह जानते हुए कि तुम हो कितनी मेरी ख़ास,
क्या करूं…. लाचार हूॅं, आऊं कैसे तेरे पास।
कभी ख़्वाबों में देख लेता हूॅं तेरा हसीन चेहरा,
हक़ीक़त की दुनियां फिर भी करती मुझे निराश।
…. अजित कर्ण ✍️