” यह घूँघट , नटखट , हठी पिया ” !!
यह घूंघट , नटखट , हठी पिया !!
मन भावे ना , पर करे चुहल ,
नज़रों को बांधे है प्रतिपल !
मैं छुई मुई बनकर बैठूं ,
जब तुमने दामन थाम लिया !!
तिरछी नज़रों की बैचेनी ,
पर फैलाये , करे अनसुनी !
जब चंचल मन होता बागी ,
कैसे उस पल को जिए हिया !!
चेहरे के भाव पढ़े कोई ,
घूंघट की सीध तके कोई !
फिर चाहे पहरे बैठाना ,
अधरों को मैंने तभी सिया !!
दुनिया ठहरी ठहरी लगती ,
घूंघट ऊपर प्रहरी लगती !
जीने दो हमको भी खुलकर ,
जब पल पल तेरे नाम जिया !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )