यह कैसी सर्दी है?
यह कैसी सर्दी है?
धूप की पगडंडी पर सर्द हवाएं चलती हैं, दौड़ लगाती हैं
बुधिया भी घर से निकल पड़ी, बस भागी जाती है
यह कैसी सर्दी है?
नेताजी आते हैं, कंबल बंटते हैं , भगदड़ मचती है
लूट में फंसी गरीबी, देखो कैसे मरती है !
कंबल की एक चाहत में लाचारी रोती है
यह कैसी सर्दी है?
काश कि कंबल घर पर जाते, मिलना जिसको मिल ही जाते
चैनल वाले वहां भी होते, नेता की फोटो भी आती
गरीबी मरने से बच जाती, अखबारों में बुधिया हंसती
तब कोई भगदड़ न होती, मरने की यूं खबर न आती
यह कैसी सर्दी है?
कल ही तो एक बात सुनी थी, आदेश शराबबंदी का है
ज़हर पर लेकिन रोक नहीं है, गांव-गांव सस्ता मिलता है !
गरीबी बिना कष्ट मरती है , लाचारी कुछ कब कहती है !
पिएगा वो मरेगा ही, नेता ने यह बात कही है !
फिर होरी ने क्यों नहीं सुनी है ?
यह कैसी सर्दी है ?
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–राजेंद्र प्रसाद गुप्ता,मौलिक/स्वरचित।