यह कैसी विडंबना है, जहाँ सत्य का अभाव है, ताड़का की प्रवृत्त
यह कैसी विडंबना है, जहाँ सत्य का अभाव है, ताड़का की प्रवृत्ति में भी, श्याम का निवास है।
सुर्पनखा सी स्त्रियाँ भी, राम का हाथ चाहती हैं, द्वेष और छल में लिप्त रहकर, धर्म का साथ चाहती हैं।
शकुनी जैसे लोग यहाँ, नियति को मोड़ते हैं, रावण जैसे अभिमानी, अधिकार को तोड़ते हैं।
दुशासन जैसे पुरुषों को भी, सम्मान की है चाह, आचरण में जिनके कमी है, उन्हें भी चाहिए वाह-वाह।
पर यह तो संसार की चाल है, जहाँ अधर्म का भी बोलबाला है, सच्चाई और सत्यनिष्ठा का, आज प्रश्नवाचक काला है।