यह कैसी आत्मिक शान्ति?
यह कैसी आत्मिक शान्ति..??
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अमरमणि का आंगन लोगों से ठसाठस भरा हुआ था , ग्यारह पंड़ित वैदिक मंत्रोच्चारण कर रहे थे , फिजाओं में मंत्र गुंजायमान हो रहे थे।
अमरमणि दोनों हाथ जोड़े एक तपस्वी की भाती अपने स्वर्गवासी पिता के दिवंगत आत्मा को शान्ति दिलाने में लीन था।
वैसे तो वहाँ समाजिक प्रथा के निर्वहन में बैठे तमाम जन मौन व्रत धारण किये हुए थे किन्तु सभी लोगों के मनोमस्तिष्क में भावनाओं का नग्न ताण्डव बदस्तूर चल रहा था।
कारण अमरमणि ने जीते जी कभी भी अपने पिता को न शान्त रहने दिया और नाहीं जीवन भर कोई सुख …..ऐसा नहीं कि उसके पास पैसों की कोई कमी है करोडपति बाप का इकलौता औलाद किन्तु संस्कार से विलकुल गरीब।
जब जीवित रहते पिता को सुखी न रख सका तो अब इस दिखावे इस आडंबर का क्या लाभ।
हमारे समाज में ऐसी घटनाएं हर दिन घटित होती है जीतेजी जो माता पिता को पानी तक को नहीं पूछते यहाँ तक की उन्हें बोझ समझने लगते है वहीं लोग मरणोपरांत उनकी आत्मिक शान्ति के लिए आडंबर का सहारा लेकर समाज में दिखावा करते हैं।
यहीं कार्य अमरमणि भी कर रहा था …..अब यह यक्ष प्रश्न है कि क्या इन आडंबरों से वह आत्मा शान्त हो पाती है जो इन्हीं प्रिय जनों के कारण जीवन प्रयंत अशान्त रही।
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पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार??