यही है विकास का गुजरात मॉडल!!!
आपको कभी इन बातों पर आश्चर्य नहीं होता कि किसी वक्त हमारे देशवासियों को ‘काला कुली’ कहकर बुलाने वालों को विगत कुछ दशकों से हमारे देश में ‘विश्व सुंदरियां’ नजर आने लगीं, भारतीय नेताओं का स्वागत रेड कॉरपेट बिछाकर एक ‘रॉक स्टार’ की तरह किया जाने लगा है. पूरी गर्मजोशी से विदेशी राष्ट्राध्यक्ष हमारे प्रधानमंत्री को तीन बार गले लगाते हैं. इन सब बातों को हमारा मीडिया भी खूब छापता, दिखाता और सुनाता है- मसलन; तीन बार गले मिले मोदी-नेतन्याहू, अमेरिका में रॉक स्टार की तरह किया गया मोदी का स्वागत, पेरिस में भी लगे मोदी-मोदी के नारे, मोदी ने धूम मचा दी दुनिया में, दुनिया में देश के सम्मान को शिखर में पहुंचा दिया मोदी ने, विश्वविजेता भारत लौटे आदि-आदि. राष्ट्रवाद की भावुक चाशनी में लिपटी इन खबरों को पढ़-देख-सुन कर हम भारतीय बहुत खुश होते हैं.
आखिर इस सबकी क्या वजह है, क्या सचमुच हम गोरे-सुंदर और प्रतिभावान-अन्वेषी-वैज्ञानिक हो गए? हमारे नेता कोई खास करिश्मा करने से रॉक स्टार हो गए. या फिर इस सबके पीछे का सच कुछ और ही है?
मेरे मित्रों, असल सच यह है कि पश्चिमी देशों में तेजी से हो रही तकनीकी क्र ांति से वहां औद्योगिक उत्पादन इतना अधिक होने लगा है कि उन्हें अब बड़े पैमाने पर बाजार, उपभोक्ता, खनिज-भूमि और मानव संसाधन चाहिए. भारत, चीन के बाद दूसरा ऐसा सबसे बड़ा देश है जहां उपभोक्ता, खनिज संपदा, भूसंपदा, वनसंपदा, जलसंपदा और मानव संपदा का अंबार है. साथ ही यहां की संस्कृति भी वैश्विक शोषकों के अनुकूल है. इसलिए दुनिया के विकसित देशों की नजर हमारी तरफ लगी हुई है. यह बात तो आपको मालूम ही है प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव के कार्यकाल में डॉ. मनमोहन सिंह वित्त मंत्री हुआ करते थे. उनके कार्यकाल में हमारे देश में आर्थिक उदारीकरण की शुरु आत होती है. उनकी इस नीति से खुश होकर अमेरिका ने डॉ. मनमोहन सिंह को ‘विश्व का सर्वोत्तम वित्त मंत्री’ के सम्मान से नवाजा था. तब भारतीय जनता पार्टी ने डॉ. मनमोहन सिंह को विश्व बैंक और अमेरिका का दलाल बताया था. आज मोदी जी क्या कर रहे हैं? यह तो आपको पता ही है. अब तो वही सब बातें अद्वितीय और महान उपलब्धियों के रूप में पेश की जा रही हैं. देश की धन-धरती को लूटने के लिए देसी-विदेशी पूंजीपतियों ने टाइअप कर लिया है. नतीजा हम देख रहे हैं. इन षड्यंत्रों से जनता का ध्यान हटाने के लिए कश्मीर, तीन तलाक, गौमांस, मंदिर निर्माण, सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक नोटबंदी, पद्मावती, हजयात्र, चार बीवी-चालीस बच्चे, आतंकवाद और न जाने क्या-क्या मुद्दे धीरे से जनता के बीच मीडिया के माध्यम से फेंक दिए जा सकते हैं. जनता असल मुद्दों को छोड़कर इनमें उलझ जाती है. युवाओं को रोजगार, अर्थव्यवस्था और विकास में सभी जाति-वर्ग की बराबर की भागीदारी, जनता में वैज्ञानिक चेतना का विकास जैसे मुद्दे तो गायब ही कर दिए जाते हैं. आपको याद होगा 2014 के लोकसभा चुनाव के दरम्यान मोदी जी सारे देश में गुजरात मॉडल का जादुई पिटारा लेकर घूमे थे. जनता उसके व्यामोह में फंस गई. अब उस गुजरात मॉडल का क्या हुआ, इस पर कभी आपने विचार किया? अभी दावोम के विदेश दौरे में मोदी जी दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम का ज्ञान पेलकर आए हैं. उन्होंने वहां यह नहीं बताया कि उनके देश में लोग किस तरह किसी के घर में गौमांस होने की आशंका पर परिवार के मुखिया की हत्या कर देते हैं, दलित-आदिवासियों के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाता है?
अभी हाल ही में अखबारों में चौंकानेवाली रिपोर्ट छपी है जो पूर्णत: सत्यता पर आधारित है, जरा उसका भी अवलोकन कर लें. पिछले साल भारत में जितनी संपत्ति का निर्माण हुआ, उसका 73 फीसदी हिस्सा देश के एक फीसदी अमीरों की जेब में चला गया. अंतर्राष्ट्रीय राइट्स समूह ‘ऑक्सफेम’ के सर्वेक्षण में देश की आय में असमानता की यह भयावह तस्वीर सामने आई है. विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की शिखर बैठक शुरू होने से कुछ घंटे पहले जारी सर्वे रिजल्ट में कहा गया है कि 67 करोड़ भारतीयों की संपत्ति में सिर्फएक फीसदी की वृद्धि हुई है. ऑक्सफेम इंडिया के मुताबिक 2017 में देश के एक फीसदी अमीरों की संपत्ति बढ़कर 20.9 लाख करोड़ रु पए से अधिक हो गई है. यह रकम केंद्र सरकार की ओर से पिछले साल पेश किए गए आम बजट के बराबर है. पिछले साल दुनियाभर में अर्जित की गई संपत्ति का 73 फीसदी केवल एक प्रतिशत लोगों के पास है. वहीं, 3.7 अरब लोगों की संपत्ति में कोई इजाफा नहीं हुआ जिसमें गरीब आबादी का आधा हिस्सा आता है. सर्वेक्षण में बताया गया है कि देश की कुल संपत्ति का 58 फीसदी हिस्सा देश के एक फीसदी अमीर लोगों के पास है. यह वैश्विक स्तर के आंकड़े से ज्यादा है. भारत में पिछले साल 17 नए अरबपति बने हैं. इसके साथ ही अरबपतियों की संख्या 101 हो गई है. 2017 में भारतीय अमीरों की संपत्ति 4.89 लाख करोड़ रु पए बढ़कर 20.7 लाख करोड़ रु पए हो गई है. यह 4.89 लाख करोड़ कई राज्यों के शिक्षा और स्वास्थ्य बजट का 85 प्रतिशत है.
इस सर्वेक्षण के मुताबिक न्यूनतम मजदूरी पाने वाले किसी मजूदर को देश की किसी गारमेंट कंपनी के एक टॉप एक्जीक्यूटिव की एक साल की आमदनी के बराबर कमाई करने में 941 साल लग जाएंगे. इसी तरह, अमेरिका में एक सामान्य कामगार सालभर में जितना कमाता है, उतना एक सीईओ एक दिन में ही कमा लेता है.
इस सव्रेक्षण में इस बात को विस्तार से बताया गया है कि कैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था अमीरों को और अधिक धन एकत्र करने में सक्षम बनाती है जबकि लाखों-करोड़ों लोग जिंदगी जीने के लिए मशक्कत कर रहे हैं. यदि यह सचमुच 56 इंच सीना रखनेवाले नेता की सरकार है तो भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देश की अर्थव्यवस्था सभी के लिए काम करती है न कि सिर्फ चंद लोगों के लिए.
– संपादित फेसबुक पोस्ट 24 जनवरी 2018