यहां सुनता नही कोई
तू चल अकेला ये जीवन संघर्ष तेरा है
हिस्से दारी की तमन्ना बस वहम तेरा है
यहां दर्द के नही ,बस शौहरत के भागीदार
ये गूंगो की बस्ती है यहां अंधों का बसेरा है
यहां सिसकियों को हाथ बढ़ाता नही कोई
ये नगरी है बहरो की यहां सुनता नही कोई
प्रज्ञा गोयल ©®