” यहाँ कई बेताज हैं “
गीत
आधार छंद : प्रदीप छंद
मात्रा भार : 16:13
पदान्त : 212
नोटों के भंडार छिपाए ,
यहाँ कई बेताज हैं ।
जनता जब जब पर फैलाए ,
झपटे बन कर बाज हैं ।।
भ्रष्टाचार फला फूला है ,
राजनीति की देन है ।
सत्ता से है नैन मटक्का ,
नेता सब बैचेन है ।
छापे जब जब पड़ते हैं तब ,
खुल जाते सब राज हैं ।।
सच्चाई की चादर ओढ़े ,
नित फैलाते झूँठ वे ।
है ताकत लाठी में उनकी ,
पकड़े बैठे मूँठ वे।
भेद खुले तो शोर मचाते ,
खुद पर करते नाज़ हैं ।।
चौकस नज़रें बड़ी ज़रूरी ,
रखें तीसरी आँख भी ।
अर्थतंत्र में सेंध नहीं हो ,
फैलाये सब पाँख भी ।
लूट करे जो शातिर ठहरे ,
बदले नित अंदाज हैं ।।
गढ़ चरित्र आदर्श रखें कुछ ,
फिर विकास की बात हो ।
जन जन की हिस्सेदारी हो ,
जगमग दिन औ रात हो ।
अधिकारों का हनन नहीं हो ,
कल को बदलें आज हैं ।।
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्य प्रदेश )