यशोदा देवी : लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में ‘वेडिंग कार्ड वुमन’
श्रीमती यशोदा देवी जन्मजात शाकाहारी और इस निरामिष आहार की प्रचारिका भी हैं, सनातन संस्कार से जुड़ी होने सहित हर पर्वों में उपवास रखती हैं, उपवास से पूर्व अन्न और नमक छोड़ देती हैं. एतदर्थ, उपवास कला यानी ‘आर्ट ऑफ फास्टिंग’ की पुजारिन हैं, तो अरिपन चित्रकला की अनोखी कलाकार हैं.
बंग-बिहारी संस्कृति की परम्परा को अक्षुण्ण रखने वाली अरिपन या अर्पण चित्रकार श्रीमती यशोदा देवी बिहार राज्य के मनिहारी, कटिहार के ऐतिहासिक ग्राम नवाबगंज के श्री काली प्रसाद की धर्मपत्नी है. माटीकला और मूर्ति चित्रकला के मर्मज्ञ जाति कुम्हार परिवार में 25 मई 1949 में रायबहादुर हेमचन्द्र रॉय से ख़िताब पाये गीत संगीतकार पिता अटकू दर्फ़ी के यहां यशोदा देवी ने जन्म लेकर अरिपन चित्रशैली को सुंदरता का पर्याय बना दी. इनकी शादी के बाद भी ससुराल में स्वतंत्रता सेनानी श्वसुर योगेश्वर प्रसाद सत्संगी के सान्निध्य ने अरिपन चित्रकारिता को और गति प्रदान की.
उनसे हुई साक्षात्कार में उन्होंने अंगिका भाषा में बतायी कि दरअसल में आतप व अड़वा चावल को लोढ़ी पाटी में आटा की तरह महीन पीसकर और पिसाई के साथ गीला करने के लिए थोड़ा थोड़ा पानी डालकर उसे गहरा दूध या पतला मक्खन की तरह पेंट बना दिया जाता है, फिर हाथ की सभी अँगुलियों को एक साथ शंखाकार करते हुए तर्जनी या मध्यमा के सहारे अरिपन बनाई जाती है, जिनमें कई चित्राकृति स्वयमेव और मनोवांछित बनते चले जाते हैं, परंतु ऐसे अरिपन बनाते वक्त इसपर भी ध्यान दिया जाता है कि एक चित्र के बाद दूसरे चित्र बनाते समय एक दूसरे से जुड़ी रहे. हालांकि इनमें एक जोड़ी पैर की चित्राकृति बीच बीच में अवश्य रहती है, जो कि भगवान् विष्णु के चरण चिह्न होते हैं. चूंकि बंगाल, बिहार, झारखंड की सीमावर्ती जिले में ऐसी माहिलाओं द्वारा लक्खी पूजा प्रतिवर्ष की जाती हैं, प्राय: घरों में देवी लक्खी या उल्लू की सवारी करतीं लक्ष्मी की प्रतिमा साल भर प्रतिष्ठापित रहती है और कहा जाता है, विष्णुदेव अपनी अर्धांगिनी लक्खी से मिलने हर वृहस्पतिवार को आते हैं, परंतु कोजागर पूर्णिमा की रात शयन भी करते हैं. हालांकि अरिपन हर सोल्लसित पर्व त्योहारों में बनाई जाती है. यशोदा देवी द्वारा भी प्रत्येक वृहस्पतिवार को अरिपन बनाई जाती है. यह धनदेवी को अन्न व आतप चावल के माध्यम से आदर देना भी है. विवाहादि समारोहों में यही अरिपन रंगीन भी बनाई जाती है. प्रत्येक गुरुवार वे घर-आँगन में तल्लीनता से अरिपन बनाती हैं.
श्रीमती यशोदा देवी अपनी कला की प्रदर्शनी प बंगाल, झारखंड और बिहार में कई जगह की हैं. सोशल मीडिया पर भी इनके चित्र कवर हो प्रसारित हुई है. किन्तु वे राशि के रूप में पुरस्कार स्वीकार नहीं करती हैं. अरिपन चित्र जमीन पर बनाये जाते हैं, परंतु यशोदा देवी ने इनकी भित्ति चित्र भी बनायी हैं. इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में उनकी तस्वीर प्रकाशित है, तो वे लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर भी हैं. आशा है, भविष्य में इनके चित्र मधुबनी पेंटिंग्स की भांति ख्याति अर्जित करेंगे, ऐसी शुभकामना है!