यदि मैं इतिहास बदल सकती – 4 ” नही हुई सीता जी की अग्नि – परीक्षा “
अशोक वाटिका में बैठी प्रभु राम की सीते बेसब्री से रघुनंदन का इंतज़ार कर रहीं थीं , राम के हाथों अंहकारी रावण मारा जा चुका था लंका पर विजय के उपरांत श्री राम ने अशोक वाटिका के लिए प्रस्थान किया , धैर्य के पर्याय श्री राम अपनी सीते को देखने के लिए बेचैन थे बेताब थे । सोच रहे थे की कैसे इतना वक्त सीते के बिना गुज़र गया और कितनी पीड़ा दे गया था अब उस पीड़ा का अंत था , सीते से मिलन का समय नजदीक आ रहा था प्रभु के कदम तेजी से अशोक वाटिका की तरफ बढ़ रहे थे । लक्ष्मण को अपने बड़े भईया की बेचैनी साफ – साफ दिखाई दे रही थी हमेशा की तरह भईया के कदमों के पीछे चल दिये , अशोक वाटिका में कदम रखते ही त्रीजटा ने प्रभु का स्वागत किया और माँ सीता के पास चलने का आग्रह किया प्रभु त्रीजटा के साथ चलने लगे थोड़ी देर चलने के बाद एक पेड़ दिखाई दिया जहाँ कोई बैठा था पास आने पर देखा की वह तो सीते हैं पहले से बहुत कमजोर परंतु मुख के तेज में रत्ती भर भी कमी न थी । सीते उठीं और प्रभु के चरणों में बैठ गईं आखों से अश्रू की धार लगातार बहे जा रही थी श्री राम ने कंधे से पकड़ कर उठाया और बोले सीये ! सीया के कानों में प्रभु की आवाज शहद के रूप में उतर गई प्रभु ने सीये का हाथ अपने हाथों में लिया और प्रभु के स्पर्श से जैसे दो बर्षों का अंतराल वहीं खत्म हो गया ।
अशोक वाटिका से बाहर आने पर विभीषन की प्रजा प्रभु श्री राम माँ सीता और लक्ष्मण की जय जयकार कर रही थी प्रजा को अपना आशीर्वाद दे सीये को साथ ले अयोध्या के लिए चल दिये । अयोध्या में इनके स्वागत की तैयारी चल रही थी पूरी अयोध्या को दीपों से सजाया जा रहा था , चौदह वर्षों के बाद आज पूरे राज परिवार और अयोध्या वासियों ने प्रभु श्री राम – सीता और लक्ष्मण के साथ दीपावली मनाई सभी अत्यधिक प्रसन्न थे ।
कुछ दिन बीते ही थे की समाज के कुछ लोगों की आवाजों से फुसफुसाहटें सुनाई देने लगीं कि दो वर्षों तक पराये आदमी के यहाँ रह कर आईं हैं इसलिये अपनी पवित्रता का प्रमाण अग्नि – परीक्षा के द्वारा देना चाहिए , प्रजा की बात राजा तक तो पहुँचनी ही थी बस क्या था प्रजा पालक ने अग्नि – परिक्षा का दिन तय कर दिया ।
अयोध्या के विशाल मैदान में लकड़ियाँ सजी थीं राजा प्रजा सभी वहाँ उपस्थित थे सीता भी अलग बैठी थीं अंदर द्वंद चल रहा था लज्जा से गड़ी जा रहीं थी लेकिन अपनी अंतरदशा प्रभु के सामने व्यक्त न होने दी , प्रजा रो रही थी औरतें सोच रही थी की माता सीता की जगह अग्नि में वही समा जाएँ , अग्नि प्रज्वलित की गई राम की सीया ने अग्नि में जाने से पहले मर्यादापुरूषोत्तम श्री राम को मुड़ कर देखा उनको प्रणाम किया और अग्नि की तरफ बढ़ चलीं अपना दाहिना पैर अग्नि की तरफ बढ़ाया और सोचा की इसी पैर को तो बढ़ा कर अयोध्या में उनका गृह प्रवेश हुआ था आज भी पति की आज्ञा से अग्नि प्रवेश है आंतर बस इतना सा है कि उस वक्त पति श्री राम साथ में खड़े थे आज वो नितांत अकेली हैं तभी लगा जैसे किसी ने उनका हाथ पकड़ लिया मुड़कर देखा तो क्या देखती हैं की मर्यादापुरूषोत्तम उनका हाथ पकड़े खड़े हैं उनकी आँखों से आँसू झर रहे हैं , शब्दों की कोई आवश्यकता नही थी मर्यादापुरूषोत्तम की सीया का झुका हुआ सर उपर उठा हुआ था और अपने पति पर गर्व करती हुयी गर्व से से उनके साथ राजमहल की तरफ जा रही थीं प्रजा अपने राजा का जयघोष कर रही थी ।
स्वरचित एंव मौलिक
( ममता सिंह देवा , 17 – 04 – 2019 )