मिथिला मैथिली के नाम पर दललपनी आ चलकपनी
मिथिला मैथिली के नाम पर दललपनी आ चलकपनी.
मिथिला मैथिली के कटु यथार्थ यै मैथिली नामे दललपनी करब पेट पोसब आ चलतपनी फिराक जे मैथिली सबहक छियैअ? की जे बारहो बरण के भरमौने रहब आ अप्पन सुआर्थ सिद्ध करैत रहब आ लोको के अप्पन कुकृत्य नै बुझह देबै. मिथिला मैथिली नाम पर कतेको दलाल आ तेकर गिरोह सक्रिय रहल आ मैथिली नामे लाभ ओकरे टा भेटैत रहलै.
अहाँ कनियो जागरूक ही क बलू त ओई दलाल सब से पूछहू जे मैथिली बारहो बरण के लिखब बाजब के माोजर हुअ देलकै की? तोरा माई के बोल के संपादित कर जबरदस्ती मानकीकरण कर देल जाई होऊ कैले? की ऊ सब अपन माएक बोल छोड़लकै? त फेर तोरा किए अप्पन बोली छोड़ा देल जाई होऊ? तोरा अरू पिछलग्गू बनि अकरा मान लै छहू? तोरो अरू त अप्पन माईके बोली गिरबी राख दललपनी करले फिरै छहि. मानकी दलाल के त अप्पन माएक बोली छै ओकरा लाभे लाभ. तोरा अरू के की भेटलौ घरिघंटा?
मिथिला मैथिली नाम पर दललपनी के आरंभ:
1. जहिए मैथिली महासभा गठित भेल तहिये से मैथिली दरबारी दलाल सबहक कब्जा मे आबि गेलै. ऊ सब सुनियोजित रूपे मैथिली अमैथिल आ मानक के डांइर खीच अप्पन आधिपत्य प्रभाव जमौनै शुरू केलक.
2. लोकभाषा मैथिली के मानकी बना ततेक ओझरा देल गेलै जे आम जन मैथिली स दूर होइत गेलै. यैह त मैथिल दलाल सब चाहैत रहै जे बारहो बरण के मैथिली नै रहू आ गिरोह महासभा वला सब सबटा फायदा लूटैत रहब.
3. बारहो बरण के मैथिली लिखब बाजब के मोजर नै केलकै आ नै हुए देलकै? तकरा राड़ कोसिकन्हा ठेठी, मधेसी दैछणाहा पैछमाहा बोली बना कहा प्रसारित केलकै? खाली मानक टा के मोजर हुअ देलकै आ ई सब अप्पन दललपनी दाउ सुतारैत रहल.
4. साहित्य अकादमी मे मैथिली के मान्यता के बाद त अई पेटपोसुआ दलाल सबके दुनू हाथे लड्डू. अकादमी पुरस्कारक दलाली गिरोहबादी होहकारी केकरो स छुपित नै रहलै. यैह सबटा साहित्य सेवी आ अनका ककरो साहित्य लिखबाक लूइड़ भास नै छै. यैह बात प्रचारित करबा इ सब अप्पन साहित्यिक रोटी सेकैत रहल.
5. मिथिला मैथिली के नाम पर कुकुरमुत्ता जेकां संस्था सब बनलै. छमाही तिमाही दूमासिक पत्रिका छापब शुरू कएल गेलै. आ तेकर पहुँच पब्लिक तक कोनो पहुँच नै रहलै. हं गिरोहक लोक सब एक दोसर के कवि कथाकार उपन्यासकार समीक्षक लेखक के तगमा बँटैत रहलै आ मैथिली नामे लाभ लूटैत रहलै.
6. मैथिली मे पछुआएल लोक, बिना चिन्हा परिचे वला, सोलकन, दलित लेखक सबके कोनो मोजर नै देल गेलै? नै इ सब आंदोलन क अप्पन मोजर लै गेल? उनटे मैथिल दलाल सबहक हं मे हं मिला मानक मानैत गेल आ मंच लोभे अप्पन मौलिक बोली के संपादित करा मानक बजैत गबैत भजैत गेल.
7. वाजपेयी जी के शासनकाल मे बभनौती खेला स मैथिली के अष्टम सूची मे जोड़ा देल गेलै. अइ के बाद त ई दलाल सब बेलगाम होइत गेलै. मिथिला मैथिली नामे मनमाना करैत गेल. के रोकतै के टोकतै एकदम मनमाना. फेर मिथिलाक्षर खेला सक्रिय रूपे चालू भेल आ हो हो शुरू छै.
8. मिथिला राज के बहन्ना बना हो हो क फेर स दलाली के नवका पटकथा लिखा गेल छै. जंतर मंतर पर अभिनय संवाद ढोंग सब चालू छै. लोक सब सेहो असलियत बुझहै लगलै जे दलाली के नबका नाम मिथिला राज.
9. साहित्य अकादमी, मैथिली भोजपुरी अकादमी, मैथिली अकादमी पटना, समिति, लेखक संघ सब वरचस्ववादी दलाल सबहक अड्डा बना देल गेलै. आ फेर मैथिली नामे एकाधिकार बना लाभे लाभ. मैथिली के गिरोहबादी दलाल सबहक हाथ सौंप देल गेलै.
मिथिला मैथिली नामे चलकपनी:-
1. आम जन लोक समाज के हरदम भ्रम मे राखल गेलै जे मिथिला मैथिली सबहक हइ छै. आ मैथिली स लाभ ई दलाल सब टा कमाइत रहल. आम जन के मिथिला मैथिली स कहियो ने जोरल गेलै.
2. छूटल बारल लोक आ पछुआएल, दलित वर्गक सुनियोजित रूपे हरदम रस्ता रोकबाक प्रयास केलक. तइयो चलकपनी जे हम कोनो रस्ता रोकने छियै?
3. मिथिला मैथिली नामे बारल हारल झमारल लोक सब नै अई पेटपोसुआ दलाल सबके बिरोध कैलकै? आ नै करतौ? मंच लोभे लेखक तगमा लोभे ओहि दलाल सबहक संस्था मे शामिल हो जेतौ. औरी पाग पहिरले छिछिअले फिरतौ.
4. मिथिला मैथिली नामे विद्यापति के धो पका के खाएब बेचब आ सलहेश लोड़ीक दिना भद्री आदी के कोनो चर्च नै करत. तइयो होहकारी जे मैथिली सबहक छियै. सोलकन सब अपना महापुरूष के आयोजन नै करतौ हं अनकर आयोजन मे माला पहिर पिछलगुआ होहकारी बनतौ.
5. मिथिला रत्न/मैथिली पुरूस्कार, किदैन कहाँ पुरूस्कार बंटबाक खेल चंदा के धंधा केकरो स आब छुपित नै रहलै. तइयो निर्लज्ज बनल सबके भरमाबै जेतै जे मैथिली सबहक? आ चलकपनी क लाभ ले तूंही सब टा.
6. मैथिली बारहो बरण के नै हुअ देल गेलै आ चलकपनी केहेन जे हम केकरो कोनो रस्ता रोकने छियै? तोरा अरू के रस्ता रोक देल गेलौ त बिरोध कैले करबिही तोरो अरू दलाले संग भ जो आ गबैत रह मैथिली मे अहिना होइत एलैइए?
अई दललपनी चलकपनी दुआरे मिथिला मैथिली खंड बिखंड होइत रहलै. यथार्थ बुझैतो सब निबदी मारने रहू. मिथिला के जनता जागरूक भ गेल तहिया त अई धूर्त सबहक दललपनी चलकपनी बंद भ जेतै.
आलेख- डाॅ. किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)