यज्ञारती
* यज्ञारती *
ओम जय यज्ञ विभो। स्वामी जय सर्वज्ञ विभो।
आर्त पडा चरणों में, मैं अल्पज्ञ विभो। ओम….
दक्षिणा पत्नी तुम्हारी, सप्तम अवतारा।
हम दीनन को दुख से , शीघ्र करो पारा।ओम…..
मेघावाहन करके, बर्षा करवाते।
औषधि अन्न धरा पर, नाना उग पाते। ओम…
ईधन देह तुम्हारी ,वेदी उर तेरा।
कुशा लोम घृत मनसा, तप पावक घेरा।ओम….
दम शमयिता दक्षिणा, वाणी है होता।
चक्षु अर्ध्वयु होते, प्राणा उद्गाता। ओम…..
क्रोधाहूति पशू दृग, अग्नीत् मन ब्रह्मा।।
यज्ञात्मा यजमाना, पत्नी है श्रध्दा । ओम जय….
दो सिर सात हाथ चतु, सींग तीन चरणा ।
त्रिधाबध्द वृषभ त्वं, रहते उर मरणा। ओम…..
जिह्वा सात भयंकर, भास्वर हैं तेरी।
हविष्य इष्ट दे मनसा, पूर्ण करो मेरी।ओम…..
तुमसे जीवन पावन, पवन शुध्द रहती।
तुम वेदों का निर्णय, श्रुतियाँ सब कहतीं। ओम…..
रुचि- आकूति नंदन, विनय करो पूरी।
रोग कष्ट पापों से, रखना प्रभु दूरी। ओम……
स्वर्ग भोग सुत वैभव, नर तुमसे पाता।
तुमसे हीन हुआ द्विज, पाप सदा खाता। ओम….
यज्ञ नारायण आरति, जो भी नर गाता।
कहत इषुप्रिय यज्ञ से, इच्छित फल पाता। ओम…..
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’