मौलिक दोहे-३
स्वरचित मौलिक त्रयी
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०१
हार, हार से नहिं मिले, हार जीत का मान।
एक मिले दुख होत है, एक देत मुस्कान।।०१।।
०२
देख आपके रूप को, भूला अपना भान।
प्रेम उदय उर में हुआ,हटा न पाऊँ ध्यान।।०२।।
०३
कहता आज प्रताप फिर,भरूँ हृदय में पीर।
हे गुरुवर! वरदान दें, कहें मुझे सब वीर।।०३।।
:-प्रताप