“मौन”
मनुज का अस्त्र बन जाए, तो फिर इतिहास रचता है,
हिमालय से भी ऊंचे राज को दफ़ना के रखता है |
सुदर्शन राह बदले,या कि गंगा ही मुकर जाए ,
मगर यह मौन अपनी राह से, पल भर न डिगता है ||
बड़ी भीषण कहानी आज, वह इतिहास न बनती,
सुर्ख होकर लहू की धार, नदियों में न यूं बहती |
धरा को चीरने वाला, समर विकराल न होता,
द्रुपद कन्या अगर उस वक्त, केवल मौन ही रहती ||
नदी का जल भी नीरव ही, पहुँचता सिन्धु में जाकर,
मिलन की तप्त ज्वाला को, समेटे उर में भी होकर|
अगर वह मौन को तोड़े, दिशाए अपनी वह मोड़े,
बहक जाए अगर पथ से, भ्रमित हो फैल जाता है||
बड़ी भीषण विपति चाहे, मनुज के साथ हो चलती,
व्यथित मन के घरौंदे को ,व्याधि बनकर के हो डसती|
मगर जब ठान लेता है, मनुज खुद पर नियंत्रण कर,
व्यथाएँ दूर होती हैं, स्वयं ही मौन के बल पर ||