मौन समझते हो
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मधुसूदन गौतम
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19 Mar 2020 · 1 min read
समझते हो ना
तुम शब्दों को गोली मारो,मेरा मौन समझते हो ना।
अपना रिश्ता क्या है भूलो,मैं हूँ कौन समझते हो ना।
रिश्ते क्या है स्वाद बदलते , पककर शब्दो की भट्टी में ,
मिलता इनमें अक्सर जाता ,मिर्ची लोन समझते हो ना ।
कौन बड़ा है हममें यारा, इन पचड़ों से मतलब क्या है ,
मंदिर की चौखट पर तो तुम,सबको गौण समझते हो ना।
अपना घर भी मंदिर जैसा ,ना छोटा न कोई बड़ा है ,
इसको तुम पूरा मत जानो ,आधा पौन समझते हो ना।
यह दिल दफ्तर का कोना है ,आते जाते जाने कितने ,
पास नहीं वो पास हमारे , टेलीफोन समझते हो ना।
दो दिन से पहचान हमारी , पर जन्म जन्म का नाता है ,
यह पिंजर जो बना देह का ,पत्थर भौन समझते हो ना।
सो छोड़ो अब सब बातों को ,आकर मन मे बस जाओ ,
इस धड़कन को सुनो प्रेम से ,प्यारी रिंगटोन समझते जो ना।
*कलम घिसाई *
{*पाठक की बस एक टिपण्णी बकवास को खास बना देती ,
सो मुझको तुम मार्ग दिखाओ
जैसे ड्रोन समझते हो ना।}