मौन आँखें रहीं, कष्ट कितने सहे,
मौन आँखें रहीं, कष्ट कितने सहे,
छाँव देकर हमें, तन तपाए पिता ।
नभ सा विस्तृत, पिता का हृदय है सुनों,
हर समस्या को आखिर हराए पिता ।
✍अरविन्द “महम्मदाबादी”
मौन आँखें रहीं, कष्ट कितने सहे,
छाँव देकर हमें, तन तपाए पिता ।
नभ सा विस्तृत, पिता का हृदय है सुनों,
हर समस्या को आखिर हराए पिता ।
✍अरविन्द “महम्मदाबादी”