*मौत मिलने को पड़ी है*
मौत मिलने को पड़ी है
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जान, जाने को चली है,
दूर हम से वो खड़ी है।
पल-पहर पहरे खड़ा है,
मुश्किलों की घड़ी है।
स्नेह में लड़ते सदा से,
आँसुओं की यूँ झड़ी है।
आ मिलो आकर गले से,
आग दिल में ही लगी है।
रोज हम मरते रहें क्यों,
जिंदगी की टूटी लड़ी है।
मार मनसीरत जुदाई,
मौत मिलने को पड़ी है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
जाने की पड़ी है।