मौत ती सस्ती हुई पर मंहगी रोटी है
मौत ती सस्ती हुई पर मंहगी रोटी है
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मौत तो सस्ती हुई पर मंहगी रोटी है,
जिंदगी पटरी पर अभी कहाँ लौटी है।
दर बदर खा ठोकर नसीब रोटी नहीं,
दो टूक रोटी मे भी किस्मत खोटी है।
रात दिन चलकर करीब मंजिल नहीं,
चलते रहिए दूर अभी ऊँची चोटी है।
भूख मे अब और नहीं कटती गुजर,
जीने को बहुत कुछ पर उम्र छोटी है।
रोज ही रोजगार में निकलते कदम,
तंबदन पंजर सा बची बाकी बोटी है।
हारकर थम गया उस रोज मनसीरत,
काम आई ही नहीं फैकी जो गोटी है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)