*मौत आग का दरिया*
मौत आग का दरिया
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मौत आग का दरिया है,
ज़िंदगी ठहर जाती है,
जो डूब गया है इस में,
दिन रात याद आती है।
हर रोज रहे मरना सा,
ऐसे जीकर क्या करना
जीवन ना जी पाती है।
जिंदगी ठहर जाती है।
दर दर है वो भटकाए,
बातें समझ नहीं आए,
राहें उन की बुलाती है।
जिंदगी ठहर जाती है।
जो जां से भी हो प्यारा,
कर जाए कहीं किनारा,
वो बगिया मुरझाती है।
जिंदगी ठहर जाती है।
वो जीना है क्या जीना,
कहीं खो जाए हसीना,
यादें बहुत रुलाती है।
जिंदगी ठहर जाती है।
घर से बे-घर वो कर दे,
जीवन में पत्थर जड़ दे,
साँसे सी थम जाती है।
जिंदगी ठहर जाती हैँ।
वो छोड़ मंझदार गया,
हो वीरान संसार गया,
नैनों से नीर बहाती है।
जिंदगी ठहर जाती है।
मनसीरत जिये या मरे,
जी कर भला क्या करे,
मन में आग लगाती है।
जिंदगी ठहर जाती है।
मौत आग का दरिया है,
जिंदगी ठहर जाती है,
जो डूब गया है इस में,
दिन रात याद आती है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)