मोह मोह का जाल है, भरे माल कंगाल l
मोह मोह का जाल है, भरे माल कंगाल l
क्यों भरता जंजाल है, जब तू कल कंकाल ll
रचा, पाया, लिया, दिया, सब है मायाजाल l
न मांस और न सांस है, बचा रहा कंकाल ll
अरविन्द व्यास “प्यास”
मोह मोह का जाल है, भरे माल कंगाल l
क्यों भरता जंजाल है, जब तू कल कंकाल ll
रचा, पाया, लिया, दिया, सब है मायाजाल l
न मांस और न सांस है, बचा रहा कंकाल ll
अरविन्द व्यास “प्यास”