मोहब्बत को पैरहन की तरह हमेशा ही बदले जो
मोहब्ब्त को पैरहन की तरह हमेशा ही बदले जो
बातें ताज की ही फिर ऐसे बशर अब करते क्यों
संग मुमताज़ उन हजारों की आत्माएं भी रोती हैं
मोहब्बते-पाक की ख़ातिर लहद में सब रहते जो ।।
शुचि(भवि)
मोहब्ब्त को पैरहन की तरह हमेशा ही बदले जो
बातें ताज की ही फिर ऐसे बशर अब करते क्यों
संग मुमताज़ उन हजारों की आत्माएं भी रोती हैं
मोहब्बते-पाक की ख़ातिर लहद में सब रहते जो ।।
शुचि(भवि)