तीन शेर***
ठुकरा दिये उसके दिये सारे तख्तो ताज हमने ;
मुझको मालूम था तब फकीरी में जीने का मजा |
मेरी हस्ती की फिकर करने वाले जरा तू भी;
भंवर में डूबती अपनी कश्ती को बचा |
उसके तालुके से कोई ताअल्लुक नहीं मेरा,
मुझको मेरे ही शहर की दो गज जमीन काफी है |