मोहन समझो मन की पीर
मोहन समझो मन की पीर
तुम बिन कैसे धरु मैं धीर ।
दिन रैना दर्श की तृष्णा
किस विध तृप्ति हो बिन नीर ।
मोहन समझो. ….
विरह वेदना भरी हिय में
नहीं भाव से है यह वीर ।
सखा तुम्हें माना जब हमने
छोड़ा क्यों बिछोह का तीर ।
मोहन समझो. …..
सुख दुख पर हो दृष्टि मनहर
जीवन मेरा तेरी जगीर ।
जब जब नाथ तुम्हें पुकारूँ
सदा बढ़ाना मदद का चीर ।
मोहन समझो …..
डॉ रीता