मोर सपना
मुक्तक – मोर सपना तहीं
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तोर आँखी के काजर दीवाना करे,
मोला देखे ब का का बहाना करे।
जे गली म कभु तै आए नहीं,
मोर मोहल्ला म तै आना जाना करे।
तोर मया म मैं हद से गुजर जाहूँ न,
जाने का का दीवानी मैं कर जाहूँ न।
छोड़के तै कभु झन जाबे मोला,
ये दीवानी नहीं त मैं मर जाहूँ न।
मोरे सपना तहीं जिंदगानी तहीं,
मोरे जीवन के अनमिट कहानी तहीं।
नइये जीना मोला तोर बिन जग म,
मैं ह राजा तोरे मोर रानी तहीं।
★★★★★★★★★★★★★
डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”