मोमोज़
रात को 2:30 बजे गहरी नींद से उठ कर किसी जवान व्यक्ति को अर्ध विक्षिप्त हालत में देखना अपने आप में एक अप्रिय कार्य है उस रात ऐसी ही अर्ध मूर्छित एवं विक्षिप्त स्थिति में एक ही परिवार के सात आठ सदस्य एक मरीज को लादकर मेरे पास लाए तो उसके परीक्षण के बाद उसकी बीमारी के लक्षणों को पहचान कर मैंने उनसे पूछा
क्या इसका घर में किसी से इनका झगड़ा या कोई तनाव की बात तो नहीं हुई है ?
इस पर वे सब बोले
‘ हां साहब हम सब लोग बैठे काम कर रहे थे तभी इनका इनकी पत्नी से झगड़ा हो गया और इसके बाद ये बेहोश हो गए ‘
उसको कुछ उपचार देने के बाद जब वह आराम से हुआ तो मैंने उन सब से पूछा कि रात को 2:30 बजे तुम्हारा पूरा परिवार एक साथ क्या कार्य कर रहा था ?
इस पर उन लोगों ने बताया
‘ साहब हम लोग उस समय रात को मोमो बना रहे थे ।
मेरे और पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि हमारा पूरा परिवार एक साथ बैठकर यह कार्य करते हैं , हम में से कुछ लोग बारीक सब्जी काटने का कार्य करते हैं तो कुछ लोग मैदे को बेलते हैं , कुछ उसको काटकर उसमें सब्जी को भरते हैं फिर इस कार्य में हमें रात के 2:30 बज जाते हैं और इन बने हुए कच्चे मोमोज़ को हम टोकरियों में रख कर रख देते हैं । यह जो बीमार आपके सामने लेटे हैं ये ही एक मॉल में काम करते हैं । रात को 2:30 बजे मोमोज़ बनाकर रख देने के बाद हम लोग सो जाते हैं और फिर अगले दिन सुबह 9:10 बजे तक उठते हैं फिर तैयार होकर ये मॉल में काम करने चले जाते हैं वहां इनकी ड्यूटी सुबह 11:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक की रहती है , उसके बाद उसी मॉल के बाहर दरवाजे के पास यह अपने मोमोस बेचने के लिए अपना काउंटर सजाते हैं और यह जो मोमोज़ हम लोगों ने रात को 2:30 बजे बनाकर टोकरियों में ढक कर रख दिए थे उन्हें ये अगले दिन शाम 6:00 बजे से रात 10:11 बजे तक गर्म कर करके ग्राहकों को खिलाते हैं । फिर ये रात 11:00 बजे तक घर लौटते हैं । तब हम लोग खा पीकर सब लोग मोमो बनाने बैठ जाते हैं । ‘
आज मेरी गली में एक सब्जी वाला अपना ठेला लेकर आया मुझे उसके ठेले की बनावट अन्य सब्जी वालों के ठेले से अलग दिखी इस पर मैंने उससे पूछा कि इस ठेले पर कोरोना काल से पहले तुम क्या व्यापार करते थे ?
‘ इस पर उसने बताया कि साहब इस ठेले पर मैं मोमोज़ और मुरादाबादी मूंग की दाल का ठेला लगाया करता था । इस ठेले पर लगा हुआ यह काउंटर उसी के लिए है , लाचारी में यह इस ठेले पर सब्जियां बेचने को धूप में निकला हूं ।’
कोरोना काल में मैं उसके चेहरे के हाव भाव से उसके व्यापार की लाचारी समझ रहा था । मुझे लगा इसकी तरह से इस समय देश मे करोड़ों ढेले खोमचेवाले , फेरी लगा कर छोटा मोटा कारोबार करके अपना घर परिवार चलाने वाले और न जाने कितने परिवार इस समय घर पर खाली बैठे एकाकी में मुसीबतों से सामना कर रहे होंगे और जीवन यापन के लिए अनिश्चित काल के लिए संघर्ष रत होंगे ।’
आत्म सुख एवं संतुष्टि की प्राप्ति के लिए एवं मानव मात्र के कल्याण के लिए यह समय ऐसे लोगों की हर संभव सहायता करने का स्वर्णिम अवसर है ।