मोटूमल का भोजन
खाते रात दिवस रहे, मोटूमल भरपेट।
लड्डू पेड़ा और सभी, होता उनको भेंट।
होता उनको भेंट, भोग सबका है लगता।
जो भी मुख को भाय,सदा थाली में सजता।
कह महंत कविराय, कभी भी रहे न भूखे
हरदम भोजन ठूँस, सदा देखे हैं खाते।।
खाते रात दिवस रहे, मोटूमल भरपेट।
लड्डू पेड़ा और सभी, होता उनको भेंट।
होता उनको भेंट, भोग सबका है लगता।
जो भी मुख को भाय,सदा थाली में सजता।
कह महंत कविराय, कभी भी रहे न भूखे
हरदम भोजन ठूँस, सदा देखे हैं खाते।।