मोटर गाड़ी खिलौना
मन्ना रूठे मुन्नी रूठे,
दोनों रूठे बाजार में,
देख खिलौना बच्चे रूठे,
मांँ चिंतित हुई प्यार में,
घोड़ा हाथी गुड़िया तरह-तरह के खिलौने,
फिर भी बच्चे रूठ गए मोटर कार में,
चाबी भर कर चलती है,
दौड़ती है रफ्तार में,
मुन्ना-मुन्नी कोई न माने,
लगे समझाने बड़े सयाने,
बाल हट से कोई न जीते,
रोने लगे बीच बाजार में,
मांँ का हृदय छलक उठा,
आंँसू देख बच्चों के आंँख में,
मोटर गाड़ी झटपट दे दो भैया,
बाल हट से मांँ-बाप हारे संसार में।
रचनाकार –
✍🏼 बुद्ध प्रकाश;
मौदहा हमीरपुर।