मोछ वाली माउगी (हास्य कटाक्ष)
मोछ वाली माउगी।
(होली पर हास्य कथा)
धनिक दोकान दिस सँ अबैत रही कि रस्ते मे खरंजे पर बिकाउ दास भेंट भए गेलाह पूछलनि बच्चा ई कहू करिया के कतहू देखलियैअ। हम बजलहूँ नहि यौ बाबा हम अहँ पोता के एमहर कहँ देखलहूँ। बिकाउ दास बजलाह धू जी महराज हम कारी सँ केस दारही कटाएब आ अहाँ हमरा पोताक भांज कहि रहल छी। लगैए जे आई होरी खेलेबाक निशा मे अहूँ मातले छी। हमरे खनदानी नौआ छल कारी ठाकुर एमहर बिकाउ दासक पोताक नाम सेहो कारी, दूनू गोटे नामक अनुरूप देखैयोअ में ततबेक कारी। कारी जतबाक देखबा में कारी ओतबाक उजर धब. धब आकेर मोछ, बड्ड ईमानदारी सॅ शाही अंदाज मे हजामत करैत छल। ओकरा मोछक आगू मे त राजा महराजक मोछ छुछूआन लगैए। बिकाउ दास के हम कहलियैन बाबा बुझहैए मे धोखा भए गेल कारी नौआ तए अपने बथान दिस भेटत ओम्हरे जाउ ने। ताबैत उतरभारी दिस सँ कारी अपने मगन में झूमैत चलि अबैत रहैए। ओनाहियो फागुन मे सभ अपना धुन में मगन रहैए। कारी के देखैत मातर बिकाउ दास बजलाह अईं रौ करिया एहि बेर जोगिरा गबै लेल नहि एबहि रौ तोहर सिद्धप वाली भाउज खोज पूछारी क रहल छलखुन जे एहि बेर किर्तन मंडली होरी गीत गाबि जोगीरा खेलेताह कि नहि। कारी मोछ पिजबैत बाजल भैया अहाँ जाउ ने भाउजी के कहबैन भांगक सरबत बना के रखतीह। हम सभ पहिने भगवति स्थान में होरी गीत गाबि अबीर चढ़ाएब तकरा बाद अंगने अंगने होरी खेलाएब।
कारी के गप सुनि त हमहूँ राग मल्हार मे मोने मोन नाचए लगलहूँ जे आई भांग पीबि क कारी संगे खूम नाचब। एहि बिचार मे मगन रही की कारी बाजल किशन बच्चा अहूँ चलि आएब एहि बेर झाइल बजौनिहार लोक कम छै त अहाँ गीत गाबि झाइलो बजाएब। गाम घर मे नाटक खेलाई त हमही गीत नाद गाबै सँ ल के मंच संचालन तक करी। तहि दआरे निधोखे हम बजलहूँ बेस जाउ हम भगवती सथान में भेंट भए जाएब । दूपहर दू बजे किर्तन मंडलीक सभ कलाकार आस्ते आस्ते जुटान होमए लगलयै। कारी अपना दरवज्जा पर बैसी के चिलम फूकै मे मगन रहैए एक सोंठ खिचनहियै रहै की केम्हरो सँ मनोज क्रांतिकारी धरफराएल आएल आ कारी के देह पर धाईं दिस खसल। बाजल हौ कारी कक्का आई तोरे संगे होरी खेलाएब। एतबाक मे कारी फनकैत बाजल कह त एहनो खसान खसब होइत छैक एखने चिलमक आगि सँ मोछ झरैक जाएत। फेर मनोज बाजल हौ कक्का हमरो स बेसी त डंफाक ओजन छै तही दुआरे धरफरा गेलहूँ। तकरा बाद दूनू गोटे एक एक सोंठ चिलम खिचलक धआँ नाक दए के फेकलकै की कारी बाजल रौ भातिज किर्तन मंडलीक कलाकार सभ कतए नुकाएल अछि।
एतबाक में हरेकृष्ण ढ़ोलकिया ढ़ोल ढ़ूम.ढ़ूमबैत बुद्धना हरमोनियम पिपयबैत आ रामअशीष झाइलि झनकबैत तीनू गोटे तीन दिसि सॅं एकसुरे बजबैत आएल। ताबैत मे मनोज डंफा डूग.डूगबैत बाजल हल्ला गुल्ला बंद करू आ सुनु कारी कक्का के वाणी जी नहि त भरू ढ़ोलकिया के पानि जी। कि एतबाक मे कारी कठझाइल झनकबैत बाजल जोगी जा सारा रा रा त सभ गोटे एक सुरे बाजल सारा रा रा। बुद्धन बाजल रौ मनोजबा तेहेन शास्त्रीय राग मे पानि भरबाक लेल कहलीह जे दू.चारि टा छौंड़ा मारेर त डरे सँ भागी गेल। मनोज बाजल हौ भौया रंग घोरबाक लेल त पानि चाहि ने। रामअशीष बाजल
हं रौ भजार ई त ठीके कहलीहि आब ई कह जे एहि बेर भाउजी के बनत। एतबाक में कारी मोछ पिजबैत बाजल रौ भातिज जूनि चिंता कर हम एखन जीवते छी।
होरी मे कारी सौंसे गौआक भाउजी बनैत छलैक की बुढ़.पुरान की छौंड़ा मारेर सभ गोटे हंसी खुशी सँ गीत गाबि कारी संगे दिअर भाउज जेंका होरी खेलाइत छल। मनोज बाजल हौ कक्का माउगी बनबहक से साड़ी बेलाउज कहँ छह। कारी बाजल धूर रे बुरिबक जो ने तू अपने माए बला साड़ि नेने आ ने तोरे माए त हमरा भाउजे हेतीह। हौ कक्का तूं मारि टा खूएबह तोरा त बुझलेह छह हमर बाप मलेटी स रिटायर आ हमर माए सेहो मलेटी। ज ई सारी मे लाल पीअर लागल देखतैह त कतेक मुक्का मारत से कोनो ठीक नहि। अच्छा कक्का तू चिंता नहि करअ हम अपने कनियँ वला नुआँ नेने अबैत छी। कारी बाजल रौ भातिज तू बुरहारी मे हमरा गंजन टा करेमेह। हम ससुर भए के पूतहू देहक नुआँ कोना पहिरब रौ राम.राम। लोक त साड़ी देखैते मातर चिन्हि जेतैए जे ई तोरे कनियाँक नुआँ छै तब त लोको कोनो दसा बाँकि नहि राखत। बुद्धन कनेक बुझनुक ओ बाजल हौ तोरा डर किएक होइत छह कियो पूछतह त कहिअक जे ई त बुधनाक साउस के नुआँ छियैक। हमर साउस एखन अपने गाम आएल छथहिन। कारि ई सुनि चौअनियँ मुस्कान दैति एकसुरे दू गिलास देसी भांगक सरबत घोंटि गेल आ बाजल बुधन तूं हरमोनिया बजाअ ताबैत हम समधिन संगे होरी खेलेने अबैत छी जोगी जा सारा रा रा, कि फेर सभ एकसुरे गाबैए लागल जोगी जा सारा रा रा। हरेकृष्ण ढ़ोलकिया ढ़ोल धूम.धूमबैत बाजल होरी मे कक्का करै छथि बरजोरी बुरहारी मे मोन होइत छनि थोरू थोरू जोगी जा सारा रा रा। मनोज डंफा डूग.डूगबैत बाजल हौ कारी कक्का एना किएक मोन लुपलुपाइत छह। कारी झाइलि झनकबैत बाजल रौ भातिज ई फगुआ होइते अछि रंगीन तोंही कह ने मलपुआ खेबाक लेल केकर मोने ने लुपलुपाइत छैक। हं हौ कक्का एनाहियो होरी मे नएका नएका भाउज सबहक गाल त मलपुए सन पुल पुल करैत रहैत छैक।
कारी साड़ी पहिर अनमन माउगी बनि गेल मुदा मोछक देखार चिनहार दुआरे घोघ तनने। कारी हाथ सँ झाइलि ल हम गीत गाबि झाइलि बजबैत होरी गाबै लगलहूँ रंग घोरू ने कनहैया हो खेलैए होरी रंग घोरू ने सभ गोटे गीत गबैत भगवति स्थान बिदा भेलहूँ। भगवति के अबीर चढ़ा प्रणाम करैत मंडलीक सभ कलाकार अंगने अंगने होरी खेलेबाक लेल बिदा भेलहूँ। जेहेन घर तेहेन सरबत कतहु छूछे रंग टा। मुदा लोक हँसी खुशी सँ होरी खेलाई मे मगन, होइत होइत बिकाउ दासक दरवज्जा पर पहुँचलहुँ त होरी गीत शुरू केलहुँ हो हो किनका के हाथ कनक पिचकारी बुधना हरमोनियम पिपयबैत बाजल हो बिकाउ कक्का के हाथ कनक पिचकारी। एतबाक सुनितेंह विकाउ दास अपना बेटा के हाक देलखिहिन हौ मांगनि जल्दी सँ मंडली सभहक लेल दूध भांगक सरबत नेने आबह। ई सुनि हम सभ आर बेसी जोर सँ जोगीरा गबै लगलहूँ ताबैत मनोज एक आध बेर डंफा लेने धरफड़ा के खसि पड़ल। ओकरा उठेलहूँ आ सभ गोटे भरि छाक भांगक सरबत पीबि होरी गबै मे मगन। एम्हर जोगीरा देखबाक लेल कनिया.पूतरा धिया.पूता सभ घूघरू लागल।
एतबाक मे सिद्धप वाली दाई अबीर उड़बैत एलीह आ हँसैत बजलीह गे दाए गे दाए ई नचनिहार माउगी के छीयैक, सुखेत वाली कनिया बजलीह माए इहेए चिन्थुहुन ने। दाई बजलीह चिन्हबै की पहिने रंग अबीर सँ देह मुँह छछारि दैति छियैक। दाई निधोखे रंग लगबै लगलीह की घिचा तिरी मे कारीक घोघ उघार भए गेलै। दाई बजलीह गे माए गे माए एहेन मोछ वाली कनियँ त पहिनुक बेर देखलहूँ। ताबैत कारी मुस्की मारैत बाजल भाउजी हम छी अहाँक दुलरूआ दिअर कारी। दाई एतबाक सुनि ठहक्का मारैत बजलीह अईं रौ मोछ वाली कनियाँ ला कनि तोहर मोछो कारीये रंग मे रंगि दैति छियौ। एकटा
दिअर भाउज के निश्छल प्रेम त गामे घर में भेटत। तखने मनोज बाजल काकी ई कनियाँ पसीन भेल किने, दाई बजलीह हं रौ मनोज बड्ड पसीन भेल 60 वर्षक अवस्था में पहिनुक बेर देखलहुँ एहेन सुनर मोछ वाली माउगी।
लेखक:- किशन कारीगर
मूल नाम- (डाॅ. कृष्ण कुमार राय)
©काॅपीराईट