****मै से आगे हम****
****मै से आगे हम****
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मै से आगे बस हम हैँ,
बाकी सारा तो भ्रम है।
सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ते,
बन जाता सीधा क्रम है।
मंजिल मिल ही जाती है,
करते जो भी वो श्रम है।
लहरों से टकरा जाओ,
जिंदा दम यूँ हरदम है।
खुशियों के हैँ पर लगते,
कम हो जाता हर गम है।
मनसीरत पागल पंछी,
ऑंखें बेशक हो नम है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)