मै ज़िन्दगी के उस दौर से गुज़र रहा हूँ जहाँ मेरे हालात और मै
मै ज़िन्दगी के उस दौर से गुज़र रहा हूँ जहाँ मेरे हालात और मै दोनो ही असमंजस मे है किधर को जाना है या क्या फैसला लेना है, बस चला जा रहा हूँ इस उम्मीद मे की किस्मत ने अगर यहाँ ला पटका है तो जरूर यहीं इस दलदल से शायद बाहर भी निकालेगी…..
शायद मै इतना गंभीर अपने पहले इश्क़ के वक्त हुआ था या फिर पसंदीदा नौकरी को ले के हुआ था वो अलग बात है की दोनो मे से कोई मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा नहीं हुआ और उसी वक्त से मै अवारागर्द की ज़िन्दगी जिता रहा हूँ शायद दर्द या नाकामयाबी से भागने का एक रास्ता कहूँ तो गलत ना होगा….
अब इतिहास दोहरा रहा है मेरे साथ पता न अब क्या होगा क्योंकि दांव पे बहुत कुछ लगा है….