मैथिली
भव निहारु आरु चित दासी,
प्रियतम पद कमल चित भवानी।
झरी झरी बाजू,मन मकरंद
मानुख भाखा मधुर बोल । मैथिली!!
मधु रसक लोभि हे माधव,
कते दिन रहै परदेस राधेय ?
गामक नदी नहर मंंचान,
नयन झलकि मायक भाषा। मैथिली
आंगुर लहर, बियाहक चिंता ,
दुखक लहर मुरलिया मिंता।
जोगिन जोग करथि आराध,
मोहन मुरति हे जगदम्बा बोल । मैथिली !!
नाचल बसंत, गाछ फूलल,
बाजे सुधा प्रेमक चुगली।
घर विहान,गेलीह पग उजाड़,
भोरक आश नंदनी वनदेवी। मैथिली!!
तोहर बाट निहारथि सियाराम,
कते दिन अयला हे घनश्याम?
सखी कहू – “उठू हे सखि राम,
विश्व भारती के आँगनक !”मैथिली!!
तरुन मुरलि सुनिते लागल,
पवन झूमि गीत आबे जागल।
प्रकृति कहथि सगुन राघव,
भव सागर तरब हे माधवक। मैथिली!
—-श्रीहर्ष—-