मैथिली फ़िल्म उद्योग अखनी तक आ नबका प्रयोग
मैथिली फ़िल्म उद्योग अखनी तक आ नबका प्रयोग.
मैथिली फ़िल्म निर्माण अखनी तक संघर्षरत हाल मे हइ आ फ़िल्मी धारावाहिक सब कनि मनि मैथिली फ़िलिम बनैतौ रहै हइ बलू कै टा रिलीजो भेलै. लेकिन अखनी तक ओतेक काज नै भेलै जे फिल्म उद्योग नीक तरीका स स्थापित हो सकैतै?
ममता गाबै गीत स लके अभी तक कते नबका फिल्म अइलै जेना सस्ता जिनगी महग सेनूर, लव यू दुल्हिन, सजना के अंगना मे सोलह सींगार, पाहुन, लेकिन अभी आौरी सुपर हिट फिल्म बनबे पड़तौ जइ स बेसी दर्शक सब देखतौ जुड़तौ. तोरा अरू के चिंता करै पड़तौ जे बेसी दर्शक केना जुटतौ आ नै त मैथिली फ़िल्म के हाल सेहो मैथिली साहित्य सन हो जेतौ जे देखलकौ पढ़लकौ दसो टा लोक नै आ पुरूस्कार बंटैत रह एक सै ढ़ाकी?
मैथिली फ़िल्म उद्योग निर्माण अखनी तक:-
1. मैथिली फ़िल्म निर्माण धीरे धीरे डेग आगू बढेलक हई तबो बेसी दर्शक तक जुड़बा मे अभी असफल रहल यै. तकर कतेको कारण हइ क आ बलू छैहो. अभी समग्रता पर काज नै होलै जे चिंता के बात छहो.
2. बेसी मैथिली फ़िल्म धारावाहिक सब मे समग्रता के अभाव रहलै. उ फिल्म सबके संवाद पटकथा दृश्य देखला पर स्पष्ट हो जाएत जे इ सब चुपेचाप बाभनवादी मनोदृशय के पोस रहलै. मैथिली साहित्य जेंका फिल्मो वला सब एकभगाह बनल मानकी भजार खेला मे लागल हइ आ बारहो बरण के प्रसंग समस्या पर फिल्मांकन नै करलकै.
3. पैरोडी गीत संगीत मैथिली फ़िल्म के कमजोर कड़ी हइ तइयो फिल्मकार सब सचेत नै भेलै. मालिक गीत संगीत के धियान तोरा अरू के राखै पड़तौ भाई.
4. फिल्मकार, साहित्यकार, संगीतकार, गायक, कलाकार सब मे व्यबसायिक समन्वय आ सामूहिक भावना के खूब अभाव. मंगनीए सबटा काज सुतैर जाए बेसी लोक अही फिराक मे रहैए. पटकथा संवाद गीत लेखन लै लोक नै ताकल जाइए. जेना तेना बिध पूरा काज सुताइर लै जाइ हइ क.
5. निर्माता निर्देशक सब मैथिली फिल्म निर्माणक रिस्क स डेराइए स्वाभाविके? लागतो उपर हएत कीने से चिंता हरदम बनल रहै छै. दर्शक तक पहुँचै ले कोनो बेस सुभितगर प्रयास आ माध्यम के अभाव रहलै.
6. फ़िल्मकार सब सेहो मैथिली साहित्यिक गिरोह जेंका अपना मे बँटल हइ. कोई ककरो चर्च नै करतै आ नै प्रोत्साहन नीति पर काज करै जेतै. सब अपना ताले अगीया बेताल हइ. दर्शक स जुड़ै के कोनो चिंता नै हइ.
फ़िल्मकार टैग भेट गेलै बस फूइल के तुम्मा.
7. मैथिली फ़िल्म स बारहो बरण के दर्शक जोड़बाक सामूहिक प्रयास चिंता के बड्ड अभाव रहल हइ. सीनेमा सशक्त माध्यम छै जे सब जाति वर्ग तक फिल्मांकन बाद पहुँचाएल जा सकै हइ. लेकिन मैथिली फ़िल्म उद्योग अइ मे अभी विफल रहलै.
नबका प्रयोग सब हेबाक चाही:-
1. मैथिली फ़िल्म के दर्शक तक विभिन्न माध्यम सीनेपलेक्स सीनेमा हाल प्रेजेक्टर आदी माध्यम स पहुँचाबै पड़तै.
2. मिथिला मैथिली के समस्या, स्थानीय समाज जन जीवन, पलायन, वर्गभेद समस्या, शिक्षा स्वास्थ्य समस्या, आदी पर समग्र पटकथा संग फ़िल्म बनाबै पड़त. अइ स बेसी लोक तक मैथिली फ़िल्म पहुँच सकत.
3. मौलिक गीत संगीत पटकथा एक्शन मार धाड़, डायलग सब पर नबका प्रयोग क मौलिक रूपे फिल्म निर्माण पर काज करै पड़त.
4. बारहो बरण के दर्शक तक पहुंचेबाक प्रयास मे सब वर्गक संवाद शैली, जन समस्या, शोषण, सामंतवादी चलकपनी, भौगोलिक भेद भाव सबके दृशय फिल्मांकन पर नव प्रयोग करै पड़तौ.
5. गिरोहबादी वेवस्था के ध्वस्त क सामूहिक मंच निर्माण करै पड़तौ जतअ एक मंच पर फ़िल्मकार, प्रोड्यूसर, साहित्यकार कलाकार, संगीतकार, गायक, स्पाट बाॅय, सब मिली मैथिली फ़िल्म उद्योग के स्थापित करै मे एक दोसरा के प्रचार, व्यबसायिक सहयोग क बेसी स बेसी दर्शक तक मैथिली फिल्म्स के पहुँचबै के सामूहिक प्रयास मे भागीदार बनतै.
आलेख- डाॅ. किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)