मैथिली ग़ज़ल
212 212 212 212
नोर आँखिक अखनों सुखायल की न
दर्द मोनक कहूंँ अछि परायल की न
प्रेम केँ पाठशाला अहिँ केँ हृदय
नाम हम्मर अखन धरि लिखायल की न
चांँद उपराग देलक अनेकहुँ तखन
चांँदनी सँ ग़ज़ल अछि रंगायल की न
आय भौंरा केँ मन में मलिन अछि कुसुम
रंग तितली कहूंँ नै चढ़ायल की न
पूर्ण भेलेऽ ग़ज़ल आयऽ हम्मर मुदा
वाह दीपक अखन धरि सुनायल की न।।
©®दीपक झा “रुद्रा”