मैं हूं ना तुम्हारे साथ
मनीषा-मनीषा कहते हुए विवेक ने कमरे का परदा हटाया।आ रही हूं कहकर मनीषा आंचल से पसीना पोंछती हुई विवेक के सामने आ गयी। क्या हुआ जब देखो घर सर पर उठाये रहते हो, झल्लाती मनीषा ने विवेक से कहा। पगली कल तुम्हारे मां-बाबा गांव से दिल्ली हमारे घर आ रहें हैं 15दिनों के लिए , बाबा का इलाज कराना है। सुनते हीं मनीषा ख़ुशी से झूम उठी और फिर अगले हीं पल उदास हो गई। क्या हुआ, क्यों उदास हो? विवेक ने मनीषा का हाथ अपने हाथों में लेते हुए पूछा। मनीषा बोली- वो सब तो ठीक है, पर मैं इस बड़े शहर में अनजान हूं मां-बाबा भी पहली बार आ रहें हैं सोच रहीं हूं कैसे उन्हें लेकर कहां-कहां भटकूंगी। बुद्धु बस इतनी सी बात आज हीं मैंने आफिस में एक हफ्ते की छुट्टी की एप्लिकेशन दे दी है।हम दोनों मां-बाबा को लेकर डाक्टर के पास जायेंगे।
सच में ख़ुशी से मनीषा की आंखें भर आई। विवेक बोला- तुम मेरे मम्मी-पापा का ख्याल अपने मां-बाबा के जैसे रख सकती हो, फिर क्या मैं उनका ख्याल अपने मम्मी-पापा के जैसा नहीं रख सकता, मैं भी तो
उनका बेटा हूं और फिर तुम्हारी खुशियों की जिम्मेदारी मेरा फ़र्ज़ है। मनीषा सुनकर मुस्कुराते हुए विवेक के गले लग गई और मन हीं मन ईश्वर को धन्यवाद दिया इतना समझदार पति देने के लिए।