” मैं हूँ ना “
रश्मि को समझ नही आ रहा था की क्या करे अभी अभी पति को लेकर उसका भाई हॉस्पिटल के लिए निकला था…लक्षण पूरे हार्टअटैक के थे , सुबह के छ: बज रहे थे दोनो बच्चे ( एक दस साल की दूसरा तीन साल का ) सो रहे थे चाचा ससुर से फोन पर बात हुई बोले बेटा एकदम मत घबड़ाना और पैसों की चिंता तो बिल्कुल मत करना मैं हूँ , सासू माँ और जेठ जी को भी फोन कर दिया था और उन लोगों ने और रिश्तेदारों को दिल्ली से पति के कज़ीन का फोन आया चिंता ज़ाहिर की तो रश्मि ने चाचा ससुर वाली बात बता दी…ये सुनते ही बोल उठे नही नही चाचा से पैसे मत लेना ( रश्मि के सासू माँ की अपने देवर देवरानी से बनती नही थी ) मैं हूँ ना । रश्मि को यह सुन अच्छा लगा कुछ ही घंटो मे रश्मि की बड़ी बहन जीजा भी पहुँच गये दूसरे दिन बीच वाली बहन भी पहुँच गई , पति को दिल्ली लेकर जाना था दूसरे हार्टअटैैैक का खतरा लगातार बना हुआ था फ्लाइट से ले कर जाना था और वहाँ के हॉस्पिटल का खर्चा ये सुन ससुराल पक्ष पिछे पलट गया और दिल्ली ले जाने के लिए मना करने लगा , रश्मि की बहन ने टिकट कराया और तीनों दिल्ली के लिए निकल लिए एयरपोर्ट पर एम्बुलेंस मौजूद थी पति के कज़ीन भी आ चुके थे हॉस्पिटल की एमरजैंसी में फार्मैल्टिज पूरी करनी थी रश्मि ने फार्म भरा पति के कज़न ने काउंटर पर फार्म जमा किया रिसेप्शनिस्ट ने बोला ” दस हजार जमा किजिये ” पति के कज़न पलटे और रश्मि से बोले दस हजार दो जमा करने हैं…ये सुनते ही रश्मि को लगा की ” दूसरा हार्टअटैक उसको ही ना पड़ जाये। रश्मि ने तुरन्त अपने पर्स में से पैसे गिने ( बहन का घर दूर था उसके पैसे फ्लाइट की टिकट में खर्च हो गये थे ) भगवान का शुक्र था की पूरे पैसे निकल आये पैसे गिनते वक्त रश्मि सोच रही थी की अगर पूरे पैसे नही निकले तो अपने कड़े पति के कज़न के हाथ पर रख देगी । फोन पर हुई बात लगातार उसके दिमाग में दौड़ रही थी ” नही नही चाचा से पैसे मत लेना मैं हूँ ना ” ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )