मैं हर इक चीज़ फानी लिख रहा हूं
मैं हर इक चीज़ फानी लिख रहा हूं
ये दुनिया आनी जानी लिख रहा हूं
तुम्हें कुछ हर्ज़ तो होगा न मजनूं
मैं लैला को दिवानी लिख रहा हूं
नहीं पहचानती मुझको सताकर
मुहब्बत को सयानी लिख रहा हूं
संभाला है मेरा दिल टूटने पर
खुदा की मेहरबानी लिख रहा हूं
मुहब्बत तो घड़ी भर को हुई, पर
बड़ी लंबी कहानी लिख रहा हूं
न की उसने कोई मेहमां नवाज़ी
मगर मैं मेज़बानी लिख रहा हूं
बहुत फैला हुआ है नूर ‘फैसल’
वो चेहरा चांद दानी लिख रहा हूं।