मैं हरि नाम जाप हूं।
पापों का पाप हूं मैं हर पुण्य संसार हूं।
दवा हूं रोग हूं मैं, हर चिंतन विचार हूं।।
दुख भी हूं मैं सुख भी हूं, मोह हूं माया हूं ।
नफरत की ज्वाला हूं ईर्ष्या हूं,मैं ही तो प्यार हूं ।।
जिंदा तो जीवित हूं मैं मृत्यु पर मृत हूं।
समय का फेर हूं मैं इस ब्रह्माण्ड का श्राप हूं।।
ज्ञानी हूं अज्ञानी हूं मैं बुद्धि कुबुद्धि हूं।
मैं ही अंजान हूं और मैं ही विद्वान हूं।।
घमंड भी,क्रोध भी,शांत भी अशांत भी।
महादेव भी ब्रह्मा भी मैं जीवन का काल हूं।।
मैं छल हूं कपट हूं व्यापार हूं सत्य असत्य हूं।
स्त्री भी हूं पुरुष भी हूं हर योनि में विराज हूं।।
मैं ही तो कण हूं मैं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड हूं।।
आधुनिक विज्ञान मैं पुरातन पुराण हूं।।
ये दुनिया मेरे हाथो में, मैं विकार हूं आकार हूं।।
मैं ही बिगाड़ता, सुधार के लिए मैं ही अवतार हूं।।
किसी की गलानी हूं मैं किसी की प्रार्थना हूं।
कंठ सिर्फ मैं हूं मैं ही तो हरि नाम जाप हूं।।