मैं स्त्री हूं
हां मैं स्त्री हूं!
मुझे सहर्ष स्वीकार है स्त्री होना, भिन्न होना पुरुष से,
पुरुष से भिन्नता ही तो
स्त्रियोचित गुण हैं मेरे।
मुझे स्वयं को स्वतंत्र दिखाने के लिए,
अपने बिंदी, बिछुए उतारने की जरूरत नहीं,
यह मेरी बेड़ियां नहीं।
चूड़ी, कंगन उतारने की जरूरत नहीं,
यह मेरी हथकड़ियां नहीं।
न ही गरिमा से,
देह ढकने वाले वस्त्र,
मेरे लिए कारागार हैं।
मुझे किसी अर्धनग्न पोशाक पहनने की,
कोई आंदोलन की,
धरने पर बैठने की,
भाषण व वाद विवाद की,
कोई जरूरत नहीं,
अपनी स्वतंत्रता की सीमाएं,
मैं खुद बनाती हूं।
तभी तो मैं स्वतंत्र हूं।
मैं स्वच्छंद नहीं हूं
और न होना चाहती हूं।
स्वच्छंदता विवेकहीन बनाती है, और मनुष्यता से दूर ले जाती है।
तन से भले ही मैं थोड़ी कमजोर हूं, किंतु मेरी मानसिक क्षमता का
तो पुरुषों को भी,
लोहा मानना पड़ा है।
सबसे ज्यादा तनाव और दबाव
मैं ही सह सकती हूं ।
मुझ में है पुरुषों से कहीं अधिक, प्रतिरोधक क्षमता।
निर्माणकर्त्री जो हूं ।
ईश्वर की तरह सृजन करती हूं।
मेरे मातृत्व के आगे,
मेरे प्रेम के आगे,
पुरुष सदा नतमस्तक रहा है।
मैं पुरुषों से बराबरी क्यों कर करूं???
मैं तो हर हाल में,
उस से बढ़कर ही हूं।
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