मैं सोचती हूँ
मैं सोचती हूँ
कि अब
मैं भुला ही दूँ तुझको,
मगर वो
मन का मेरे
आसमान क्या होगा?
गगन पे
तेरी याद का
जो चाँद हँसता है,
मेरी आँखों में
जो सितारे झिलमिलाते हैं,
वो सुब्हदम ही
कुनकुनी सी धूप जाड़े की,
तुम्हारी याद बन के
रोज़-रोज़ आती है,
अगर वो रूठ गई
तो मैं ठिठुर जाऊँगी,
न हँसे चाँद सितारे
तो मेरा क्या होगा?
तुम्हारी बात मान
मैं भुला तो दूँ तुमको,
मगर
ये दिल की धरा पर
जो फूल जख़्मों के
गुलाब बन के खिले
और अब
महकते हैं,
इन्हें कहाँ मिलेगा नीर
मेरी आँखों का?
गरीब बेवजह
बेवक्त सूख जाएँगे।
तू परेशान न हो
और भूल जा मुझको,
तू मेरा
ख्वाब कुँवारा था
कुँवारा ही रहा।
हमारी प्रीत की भाँवर
नहीं पड़ी तो क्या,
तेरी यादों के साथ
इस तरह
जुड़ी हूँ मैं,
कि जैसे बादलों के संग घटा होती है।
तुम्हारी याद
मेरे साथ-साथ हँसती है,
तुम्हारी याद मेरे साथ-साथ
रोती है।
मैं अपनी जिन्दगी की
लहरदार राहों पर,
उम्र की
लम्बी सड़क
पीछे छोड़ आई हूँ।
ज़रा-सा सब्र करो
और कुछ बरस ठहरो,
सफ़र ख़तम है
और तुम भी
सुख से रह लेना।
मगर यह सच है
तुम भी जानते हो इतना तो,
न हम-सा चाहने वाला
तुम्हें मिलेगा कहीं
ये जानते हो तुम्हें
भूलना मुमकिन ही नहीं।
तेरी इक बात
मान कर
भुला तो दूँ तुझको,
मगर ये सोचकर
मैं रोज़-रोज़ मरती हूँ,
उम्र जिस मोड़ पर
लेकर मुझे खड़ी है आज,
बचे हैं चन्द ही बरस
आज उसी मोड़ के बाद।
मैं डर रही हूँ कि
मैं गर भुला ही दूँ तुझको,
बचे हुए ये बरस
किस तरह बिताऊँगी?