मैं सपनों में आऊँ कैसे
द्वार हृदय का बंद पड़ा है, मैं सपनों में आऊंँ कैसे।
इश्क मुहब्बत दुनिया दुश्मन, तुमको गले लगाऊंँ कैसे।
हुआ मरुस्थल जीवन तुम बिन, पुष्प बिना उपवन हो जैसे-
सांसें, धड़कन, हृदय तुम्हारा, यह तुम को समझाऊंँ कैसे।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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